उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में हुई बुलडोजर कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया और पांच पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर गिराने की यह प्रक्रिया न केवल अवैध थी, बल्कि नागरिक अधिकारों का घोर उल्लंघन भी है। अदालत ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि मुआवजे की राशि तुरंत पीड़ितों को दी जाए।
‘राइट टू शेल्टर’ का उल्लंघन
अदालत ने कहा कि बुलडोजर एक्शन हमारी अंतरात्मा को झकझोरता है और “राइट टू शेल्टर” का भी उल्लंघन करता है। न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने कहा कि तोड़फोड़ की इस कार्रवाई में मानवीयता और संवेदनशीलता का अभाव था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर चलाने से पहले उचित नोटिस और प्रक्रिया का पालन करना जरूरी था, लेकिन यहां नियमों का उल्लंघन किया गया। अदालत ने इसे “अमानवीय और गैरकानूनी” करार देते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाई लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि मकान तोड़ने से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था। साल 2021 में पहली बार एक मार्च को नोटिस जारी किया गया था, जो उन्हें 6 मार्च को मिला। इसके अगले ही दिन 7 मार्च को मकानों पर बुलडोजर चला दिया गया।
याचिकाकर्ताओं में अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और तीन महिला याचिकाकर्ताओं के घर शामिल थे। उन्होंने दलील दी कि प्रशासन ने उनकी संपत्तियों को गैंगस्टर और राजनीतिक नेता अतीक अहमद से जुड़ा हुआ मानकर गिरा दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत न मिलने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अमानवीयता की तस्वीर ने झकझोरा
सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान बुलडोजर से झोपड़ियां गिराई जा रही थीं और उसी दौरान 8 साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी। इस तस्वीर ने सबको झकझोर कर रख दिया।
राज्य सरकार का बचाव
सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि बुलडोजर कार्रवाई से पहले पर्याप्त उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के लिए अनधिकृत कब्जा हटाना एक कठिन कार्य है और अवैध निर्माणों को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया था।
अदालत ने हालांकि सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि उचित प्रक्रिया का पालन न करना नागरिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे का आदेश इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि तोड़फोड़ की कार्रवाई अमानवीय और अवैध थी।