Monday, April 28, 2025
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नवरात्रि यात्रा: राजस्थान के 9 प्रसिद्ध देवी मंदिर, कहीं मां खुद करती हैं अग्नि स्नान तो कहीं चूहे दिखने से आती है समृद्धि

नवरात्र मां दुर्गा की विशेष आराधना का पर्व है। इन नौ दिन तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। देश के साथ ही राजस्थान में भी मां शक्ति के अनेक मंदिर हैं। जहां हर साल न केवल नवरात्र में बल्कि बाकी दिन भी हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आज हम आपको राजस्थान के ऐसे ही प्रमुख नौ मंदिरों के बारे में बता रहे हैं। ये सभी मंदिर बहुत ही प्राचीन हैं और किसी न किसी विशेषता के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। साथ ही हम आपको यह भी बता रहे हैं कि इन मंदिरों तक कैसे पहुंच सकते हैं।

1. ईडाणा माता का मंदिर, उदयपुर

यह मेवाड़ का प्रसिद्ध शक्ति स्थल है। जहां ईडाणा माता का मंदिर बना है।  यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किमी दूर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर अरावली की मनोरम पहाड़ियों में स्थित है। मान्यता है कि यहां प्रसन्न होने पर मां स्वयं ही अग्नि स्नान करती हैं। ये संपूर्ण मेवाड़ की आराध्य हैं।

मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। नवरात्र में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। विशेष तौर पर अग्नि स्नान देखने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। अग्नि स्नान की एक झलक पाने के लिए भक्त घंटों इंतजार करते हैं। माता के अग्नि स्नान से कुछ समय पूर्व जैसे ही हल्की हल्की अग्नि प्रज्जवलित होती है, पुजार उनके आभूषण उतार लेते हैं। यहां अगरबत्ती नहीं जलाई नहीं जाती, हालाकि एक अखंड ज्योत जरुर जलती है, लेकिन वह भी कांच के एक बॉक्स में रहती है। ऐसे में अग्नि स्नान आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। अब तक यह कोई पता नहीं लगा पाया है कि यह आग कैसे लगती है। आग कब लगती है इसका भी कोई तय समय नहीं है।

कैसे जाएं

ईडाणा जाने के लिए जयपुर से उदयपुर बस, ट्रेन या प्लेन से जाया जा सकता है। इसके बाद उदयुपर से करीब 60 किमी दूर कुराबड-बम्बोरा मार्ग पर मंदिर के लिए बसें और अन्य स्थानीय वाहन चलते हैं। 

2. करणी माता का मंदिर, देशनोक

बीकानेर के देशनोक में स्थित करणी माता का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। खासतौर पर यहां पाए जाने वाले चूहों के लिए। मंदिर को  ‘चूहों वाली माता’ या ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है। चूहों को यहां ‘काबा’ कहा जाता है। यहां चूहों की संख्या इतनी अधिक है कि हर तरफ केवल चूहे ही नजर आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु चूहों को प्रसाद देत हैं। चूहो का जूठा प्रसाद ही भक्तों को दिया जाता है। इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में बदबू नहीं है। यदि इन चूहों के बीच किसी श्रद्धालु को सफेद चूहा नजर आ जाता है तो वह स्वयं को सौभाग्यशाली समझता है।

कैसे जाएं

देशनोक बीकानेर से करीब 31 किमी दूर है। जयपुर और बीकानेर से देशनोक बस, ट्रेन या निजी वाहनों से जाया जा सकता है। देशनोक रेलवे स्टेशन भी है।

3. त्रिपुर सुंदरी मंदिर, बांसवाड़ा

त्रिपुर सुंदरी बांसवाड़ा जिले में स्थित एक प्रमुख शक्ति पीठ है। यहां मां भगवती त्रिपुर सुंदरी की पांच फीट ऊंची अष्ठादश भुजाओं वाली प्रतिमा स्थापित है। जो काले पत्थर से बनी है। प्रतिदिन मां का अलग– अलग आकर्षक श्रृंगार किया जाता है। मां के इस मनोहारी रूप के दर्शन के लिए दूर–दूर से श्रद्धालु आते हैं।

यह मंदिर माता तुर्तिया के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि देवी मां के सिंह, मयूर कमलासिनी होने और तीन रूपों में कुमारिका, मध्यान्ह में सुंदरी यानी यौवना और संध्या में प्रौढ़ रूप में दर्शन देने से इन्हें त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है।

कैसे जाएं

त्रिपुर सुंदरी बांसवाड़ा जिले में स्थित है। जयपुर से बांसवाड़ा के लिए बसें उपलब्ध हैं। इसके अलावा उदयपुर, जोधपुर से भी बांसवाड़ा के लिए बसें हैं। इसके बाद यह मंदिर बांसवाड़ा से डूंगरपुर मार्ग पर 18 किमी दूर स्थित है। जहां के लिए बसें व स्थानीय वाहन उपलब्ध रहते हैं।

4. मां शाकंभरी मंदिर, सांभर

मां शाकंभरी मंदिर जयपुर के पास ही सांभर कस्बे में स्थित है। यह करीब ढाई हजार साल प्राचीन है। इन्हें चौहान वंश की कुलदेवी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा नहीं हुई। भयंकर अकाल पड़ा। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की। जिससे प्रसन्न मां ने नए रूप में अवतार लिया। उनकी कृपा से वर्षा हुई। इसके बाद पृथ्वी हरी साग-सब्जी और फलों से परिपूर्ण हो गई शाक पर आधारित तपस्या के कारण इनका नाम शाकंभरी  पड़ा। इस तपस्या के बाद यह स्थान हराभरा हो गया। कहा जाता है कि समृद्धि के साथ ही यहां इस प्राकृतिक संपदा को लेकर झगड़े शुरू हो गए। जिस पर मां ने यहां बहुमूल्य संपदा और बेशकीमती खजाने को नमक में बदल दिया। इस तरह से सांभर झील की उत्पत्ति हुई। वर्तमान में करीब 90 वर्गमील में यहां नमक की झील है।

कैसे जाएं

शाकंभरी जाने के लिए आपको जयपुर से सांभर जाना पड़ेगा। जो जयपुर से करीब 70 किमी दूर है। यहां बस से जाया जा सकता है। सांभर कस्बे से शाकंभरी मंदिर 15 किमी दूर है।

5. तनोट माता, जैसलमेर

भारत–पाकिस्तान सीमा पर जैसलमेर में स्थित तनोट माता मंदिर के चमत्कारों की कहानी कौन नहीं जानता। 1965 के युद्ध में पाकिस्तानियों ने इस मंदिर में सैकड़ों बम गिराए लेकिन यह बम फटे नहीं। तब से ही यहां सीमा सुरक्षा बल के जवान मां की पूजा सेवा करते हैं। मंदिर का निर्माण लगभग 1200 साल पहले हुआ था।

बताया जाता है कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम फटे ही नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में रखे हुए हैं। प्रतिदिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

कैसे जाएं

तनोट माता मंदिर जैसलमेर से करीब 120 किमी दूर स्थित है। ऐसे में पहले आपको जैसलमेर पहुंचना होगा। किसी भी शहर से जैसलमेर बस व ट्रेन के जरिए पहुंचा जा सकता है। इसके बाद मंदिर के लिए स्थानीय स्तर पर कई टैक्सी और बसें चलती हैं।

6. जीण माता का मंदिर

जीण माता का मंदिर सीकर जिले के गाेरिया गांव में स्थित है। अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में स्थित यह मंदिर जन–जन की आस्थ का केंद्र है। वास्तविकता में इनका नाम जयंती माता है, लेकिन समय के साथ ही इन्हें जीण माता कहा जाने लगा। मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा भी बनी है। मान्यताओं के अनुसार माता का मंदिर 1000 साल पुराना माना जाता है। नवरात्रि में यहां नौ दिन तक विशाल मेला भरता है। न केवल राजस्थान से बल्कि दूसरे राज्यों से भी हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

कैसे जाएं

जीण माता का मंदिर सीकर के समीप ही स्थित है। जयपुर से सीकर के लिए ट़्रेन और बसें उपलब्ध हैं। यदि आप सीकर नहीं जाना चाहते तो रिंगस से खाटू श्याम जी और खाटू श्याम जी से जीण माता जा सकते हैं। सीकर से जीण माता के लिए कई बसें उपलब्ध रहती हैं।

7. शिला माता मंदिर

जयपुर के आमेर में स्थित शिला माता का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। मंदिर आमेर महल में ही बना है। मुख्य रूप से यह मंदिर काली माता को समर्पित है।

बताया जाता है कि जयपुर के राजा मान सिंह काली माता के बड़े भक्‍त थे। वे ही इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे। पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। यहां स्थित माता की गर्दन टेढ़ी है। माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हैं।

कैसे जाएं

शिला माता मंदिर आमेर में स्थित है। जो जयपुर में ही है। जयपुर पहुंचकर आप सिटी बस, टैक्सी आदि के जरिए आमेर पहुंच सकते हैं। आमेर से महल तक आप पैदल जा सकते हैं। जहां मंदिर स्थित है।

8.चामुंडा माता मंदिर, जोधपुर

चामुंडा माता मंदिर जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित है। इन्हें जोधपुर की ‘इष्ट देवी’ और राजपरिवार की कुल देवी माना जाता है। माना जाता है कि चामुंडा माता राव जोधा की पसंदीदा देवी थीं, इसलिए उनकी मूर्ति को 1460 में मेहरानगढ़ किले में स्थापित किया गया था। हर साल दोनों नवरात्रि में यहां बड़ा मेला भरता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

कैसे जाएं

चामुंडा माता मंदिर के लिए आपको जोधपुर जाना होगा। सभी शहरों से जोधपुर के लिए बसें और ट्रेन उपलब्ध है। जोधपुर वायुमार्ग से भी जुड़ा है। जोधपुर पहुंचकर आप टैक्सी के जरिए मंदिर तक जा सकते हैं।

9. कैला देवी मंदिर, करौली

करौली में स्थित कैला देवी मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। मान्यता के अनुसार यहां के लोग कैला देवी को भगवान श्री कृष्ण की बहन मानते हैं। कैला देवी भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करती हैं। इसलिए साल भर इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। विशेष तौर पर नवरात्रि के दौरान यहां कैला देवी का मेला भरता है। जिसमें बड़ी संख्या में अलग–अलग राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

कैसे जाएं

कैलादेवी बस और ट्रेन से जा सकते हैं। सभी प्रमुख शहरों से कैलादेवी के लिए नियमित बसों को संचालन होता है। यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन गंगापुर सिटी है। जहां से मंदिर करीब 35 किमी दूर स्थित है। गंगापुर सिटी बड़ा रेलवे स्टेशन हैं, जहां के लिए सभी बड़े शहरों से ट्रेन उपलब्ध हैं।

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