शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 3.26% की गिरावट दर्ज की गई, जो बीते तीन वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट है। यह अब 67.87 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ चुका है। इधर, मुद्रा बाजार में भी भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले पांच पैसे मजबूत होकर 85.25 के स्तर पर बंद हुआ।
सामान्य परिस्थितियों में ऐसी स्थिति आम तौर पर पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में राहत का कारण बनती है। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति और वैश्विक व्यापार पर उसके असर को देखते हुए फिलहाल किसी भी निर्णय को लेकर सतर्कता बरती जा रही है।
मार्च 2024 में मिली थी आखिरी राहत
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आखिरी बार कटौती मार्च 2024 में हुई थी, जब लोकसभा चुनाव से पहले दो रुपये प्रति लीटर की राहत दी गई थी। हालांकि इसके बाद जून और सितंबर 2024 को छोड़ दें, तो भारत ने लगातार सस्ता क्रूड ही खरीदा है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2025 की शुरुआत में भारत की क्रूड खरीद की औसत लागत 75.76 डॉलर प्रति बैरल रही, जो मार्च 2024 की तुलना में काफी कम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह ट्रेंड जारी रहता है तो कंपनियों के पास कीमत घटाने का आधार मजबूत हो सकता है।
भविष्य के अनुमान और वैश्विक रणनीति से जुड़ी उम्मीदें
केयर एज रेटिंग की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की दूसरी तिमाही में क्रूड की औसत लागत 78.80 डॉलर, और तीसरी तिमाही में 73.83 डॉलर प्रति बैरल रही है। अब जब कीमतें 70 डॉलर के भी नीचे आ रही हैं, तो उम्मीद की जा रही है कि यह स्तर 75 डॉलर से भी कम पर स्थिर हो सकता है।
यह गिरावट सिर्फ उत्पादन बढ़ने से नहीं, बल्कि वैश्विक मांग में संभावित गिरावट के कारण भी है। अमेरिका और ओपेक देशों द्वारा उत्पादन बढ़ाने का निर्णय, और व्यापार मंदी की आशंका, दोनों ने मिलकर कच्चे तेल पर दबाव बढ़ाया है।
डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत
तेल कंपनियां अक्सर क्रूड महंगे होने पर डॉलर की मजबूती का तर्क देती हैं। लेकिन इस बार स्थिति उलटी है। फरवरी 2025 में जहां डॉलर ने 88.10 का स्तर छुआ था, वहीं अब यह लगातार कमजोर हुआ है और 85.25 तक आ चुका है।
इसका सीधा मतलब है कि आयात लागत कम हो रही है, और कंपनियों को कम रुपये में ही भुगतान करना पड़ रहा है। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने की संभावना और मजबूत होती है।