26/11 Mumbai Attack के आरोपी तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किए जाने की प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है। अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने राणा की वह अर्ज़ी खारिज कर दी है, जिसमें उसने अपने प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मांग की थी। इस फैसले के बाद भारत की वर्षों पुरानी मांग पूरी होने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी राहत
64 वर्षीय तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, फिलहाल लॉस एंजेलिस के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है। उसने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की जज ऐलेना कगन के समक्ष “आपातकालीन याचिका” दाखिल की थी, जिसमें उसने अपने प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की अपील की थी, जब तक कि ‘हैबियस कॉर्पस याचिका’ पर फैसला न आ जाए।
दो बार याचिका खारिज, अब कानूनी विकल्प सीमित
पहली बार उसकी याचिका को जस्टिस कगन ने खारिज किया था, इसके बाद उसने इसे फिर से मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स के समक्ष भेजने की मांग की थी। कोर्ट ने इसे 4 अप्रैल, 2025 को होने वाली ‘कॉनफ्रेंस’ में शामिल किया, लेकिन अब कोर्ट के नोटिस के अनुसार यह याचिका पूरी तरह खारिज कर दी गई है।
भारत को मिली बड़ी कूटनीतिक सफलता
भारतीय एजेंसियों के अनुसार तहव्वुर राणा ने पाकिस्तानी आतंकी डेविड कोलमैन हेडली को भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में मदद की थी। हेडली ने अमेरिकी जांच एजेंसियों के सामने राणा की भूमिका की पुष्टि की थी। भारत लंबे समय से राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था, और अब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत को बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है।
अब क्या होगा आगे?
इस फैसले के बाद अमेरिका में तहव्वुर राणा के पास कानूनी विकल्प लगभग समाप्त हो गए हैं। अब भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण समझौते के तहत उसे भारत लाया जा सकता है, जहां उस पर 26/11 हमले में उसकी भूमिका को लेकर मुकदमा चलाया जाएगा।

- अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने 26/11 हमले के आरोपी तहव्वुर राणा की प्रत्यर्पण रोकने वाली याचिका खारिज कर दी है।
- राणा ने सुप्रीम कोर्ट में ‘आपातकालीन याचिका’ दायर की थी, जिसे पहले जस्टिस कगन और फिर कोर्ट ने पूरी तरह से खारिज कर दिया।
- तहव्वुर राणा लॉस एंजेलिस के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है और अब उसके कानूनी विकल्प सीमित हैं।
- भारतीय एजेंसियों के अनुसार, राणा ने आतंकी डेविड हेडली की भारत में आतंकी साजिशों में मदद की थी।
- अब भारत उसे अमेरिका से प्रत्यर्पित कर सकता है, जिससे भारत को इस लंबे कानूनी संघर्ष में बड़ी सफलता मिली है।