जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने रविवार को शहीदों को नमन किया। देशभर में श्रद्धांजलि संदेशों का दौर चला, जिसमें इस क्रूर घटना की भयावहता और उससे उपजे स्वतंत्रता संग्राम के तेज को याद किया गया।
राष्ट्रपति मुर्मू ने बलिदान को बताया प्रेरणा
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने पोस्ट में लिखा, “जलियांवाला बाग में भारत माता के लिए बलिदान देने वाले सभी सेनानियों को सादर श्रद्धांजलि। उनका त्याग स्वतंत्रता संग्राम की धारा को और प्रबल कर गया।” उन्होंने विश्वास जताया कि आज के नागरिक उन बलिदानियों से प्रेरणा लेते हुए देश की प्रगति में भागीदार बनेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया ‘काला अध्याय’ और ‘बड़ा मोड़’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर अपने संदेश में लिखा, “हम जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। यह देश के इतिहास का एक काला अध्याय था और उनके बलिदान ने आज़ादी की लड़ाई को नया मोड़ दिया।” पीएम का यह संदेश आज की पीढ़ी को उस दौर की नृशंसता की याद दिलाता है, जब आवाज़ उठाना भी जान पर भारी था।
गृह मंत्री ने कहा – इस हत्याकांड ने जन-जन को जोड़ा आज़ादी से
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जलियांवाला बाग को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय बताया जिसने “पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।” उन्होंने कहा कि इस क्रूरता के खिलाफ उपजा आक्रोश ही वह चिंगारी थी जिसने आज़ादी के संघर्ष को जन आंदोलन बना दिया।
शहीदों का बलिदान बना राष्ट्रीय चेतना की लौ
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसे राष्ट्रीय चेतना की एक नई लहर का जन्म बताया। उन्होंने लिखा, “1919 का यह बलिदान भारत की संप्रभुता, समावेशिता और आज़ादी की रक्षा के लिए हमें प्रेरित करता रहेगा।” विदेश मंत्री जयशंकर ने भी शहीदों को नमन करते हुए लिखा कि उनका साहस और संकल्प कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
क्या हुआ था 13 अप्रैल 1919 को?
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोग बैसाखी के पर्व के दिन एकत्रित हुए थे। यह सभा रौलेट एक्ट के विरोध और डॉ. सत्यपाल व डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ थी। इस शांतिपूर्ण सभा पर ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए फायरिंग का आदेश दिया। संस्कृति मंत्रालय के मुताबिक, लगभग 1,650 गोलियां चलाई गईं। ब्रिटिश आंकड़ों में 291 लोग मारे गए बताए गए, जबकि भारतीय नेताओं ने 500 से अधिक मौतों का अनुमान जताया था।