Wednesday, April 30, 2025
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पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होगी, कोर्ट बोला- देश की सुरक्षा सड़क पर बहस का मुद्दा नहीं

पेगासस स्पाइवेयर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। मंगलवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़े मसले सड़क पर चर्चा के लिए नहीं होते। अदालत ने कहा कि हर किसी की व्यक्तिगत चिंता सुनी जा सकती है, लेकिन टेक्निकल रिपोर्ट को लेकर कोई खुलासा नहीं किया जाएगा।

2021 से चला आ रहा है विवाद

यह मामला पहली बार 2021 में सामने आया था जब एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ने दावा किया था कि भारत सरकार ने 2017 से 2019 के बीच करीब 300 भारतीयों की पेगासस स्पाइवेयर से जासूसी की। इसमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, कारोबारी और विपक्षी नेता शामिल थे। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

जांच कमेटी की रिपोर्ट में क्या निकला

सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने अगस्त 2022 में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी थी। इसमें बताया गया कि 29 मोबाइल फोनों की जांच की गई, पर किसी में पेगासस होने का ठोस सबूत नहीं मिला। हालांकि, पांच फोनों में मालवेयर जरूर मिला।

रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग

याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने 22 अप्रैल को कोर्ट में मांग रखी थी कि रिपोर्ट को बिना एडिट किए सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने कहा कि जिस टेक्निकल पैनल की रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया। दूसरी तरफ वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वॉट्सएप के पुराने खुलासों का हवाला देते हुए कहा कि अगर स्पाइवेयर का इस्तेमाल हुआ है, तो जांच रिपोर्ट उन लोगों को दी जानी चाहिए जिनकी निगरानी की गई।

सरकार की दलील: देश की सुरक्षा सबसे पहले

सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में तर्क दिया कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल आतंकवादियों और देश के दुश्मनों पर नजर रखने के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को निजता का अधिकार नहीं मिल सकता।

पेगासस की खरीद और अंतरराष्ट्रीय विवाद

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट में बताया था कि भारत ने 2017 में इजरायली कंपनी NSO ग्रुप से पेगासस स्पाइवेयर खरीदा था। ये खरीद एक डिफेंस डील के तहत हुई थी, जिसकी कुल कीमत करीब 15,000 करोड़ रुपये थी।

पेगासस की पुरानी सुर्खियां

पेगासस का नाम पहली बार 2016 में सामने आया था, जब UAE के मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर को संदिग्ध मैसेज मिले थे। 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की जांच में भी पेगासस का जिक्र हुआ था। 2019 में वॉट्सऐप ने भी पेगासस के जरिए पत्रकारों की निगरानी की पुष्टि की थी। 2021 में पेगासस प्रोजेक्ट नामक जांच में खुलासा हुआ कि दुनिया भर के 50,000 से ज्यादा फोन नंबर इस निगरानी में शामिल थे, जिनमें से 300 भारतीय थे।

अब आगे क्या? सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी। तब तक यह तय किया जाएगा कि जांच रिपोर्ट की कौन-सी बातें साझा की जा सकती हैं और कौन-सी नहीं।

 Nationalbreaking.com । नेशनल ब्रेकिंग - सबसे सटीक

  1. सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार किया।
  2. कोर्ट ने कहा, देश की सुरक्षा से जुड़ी रिपोर्ट सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं बन सकती।
  3. जांच कमेटी ने 29 फोनों की जांच की, पेगासस के पुख्ता सबूत नहीं मिले।
  4. याचिकाकर्ता ने रिपोर्ट सार्वजनिक करने की कोर्ट से मांग की थी।
  5. अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी, जिसमें तय होगा क्या जानकारी साझा की जा सकती है।
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