पिछले महीने दिल्ली की एक कैफे में बैठकर कॉफी पी रही थी। पास की टेबल पर बैठा एक कपल लगातार चुप था। लड़की इंस्टाग्राम स्क्रॉल कर रही थी, और लड़का अपने फोन में व्हाट्सएप की चैट्स पढ़ रहा था। दोनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी, सिर्फ कॉफी ठंडी हो रही थी और मोबाइल गर्म। यह नजारा कोई अनोखा नहीं है। ये डिजिटल रिश्तों की हकीकत है, जो धीरे-धीरे हमारे स्वस्थ जीवनशैली को भी प्रभावित कर रही है।
टेक्नोलॉजी ने भले ही हमें ‘connected’ रखा है, लेकिन अक्सर ये connection सतही होता है। हम चैट में दिल की बात तो कर लेते हैं, लेकिन जब सामने बैठा इंसान कुछ कहना चाहता है तो हम “Phubbing” यानी फोन में खो जाने की आदत से उसे अनसुना कर देते हैं।
‘डिजिटल इंटीमेसी’ ने दूर कर दिया है रियल कनेक्शन?
एक सर्वे के मुताबिक, 70% कपल्स ने माना कि वे अपने पार्टनर के साथ रहते हुए भी ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताते हैं। यह कोई जानबूझकर किया गया व्यवहार नहीं होता, बल्कि एक आदत बन चुकी डेली रूटीन है – जैसे खाने के दौरान रील्स देखना या बेड पर लेटकर स्क्रॉल करते हुए सो जाना।
पर जब ये आदतें रिश्तों की जगह ले लेती हैं, तो माइंडफुलनेस और वास्तविक जुड़ाव कहीं पीछे छूट जाता है।
रिश्तों में स्क्रीन टाइम कम करने के आसान उपाय
डिजिटल डिटॉक्स किसी ट्रेंड से ज्यादा, आज की एक ज़रूरत है। और यह उतना कठिन भी नहीं जितना लगता है।
यहाँ कुछ आसान और असरदार उपाय हैं जो मैंने खुद भी अपनाए हैं और जिनका फायदा सचमुच महसूस किया:
- ‘नो-फोन जोन’ तय करें: जैसे रात के खाने का वक्त, बेडरूम या सुबह की चाय – इन समयों को टेक-फ्री रखें।
- ‘टेक डेट’ की जगह ‘टॉक डेट’: हफ्ते में एक दिन सिर्फ बातें करें – बिना फोन के, आंखों में आंखें डालकर।
- एक-दूसरे की डिजिटल आदतों को समझें, जज न करें: अगर पार्टनर देर रात तक स्क्रॉल करता है, तो वजह समझने की कोशिश करें।
- माइंडफुल स्क्रीन टाइम: जब ऑनलाइन हों, तो सजग रहें कि क्या देख रहे हैं और क्यों।
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
मैंने इसके बारे में दिल्ली में एक साइकोलॉजिस्ट से बात की। वो बताती हैं कि “टेक्नोलॉजी खुद में बुरी नहीं है, लेकिन जब यह इमोशनल क्लोजनेस की जगह लेने लगे, तब यह चिंता का कारण बन जाती है। रिश्तों को पोषण चाहिए – और वह स्क्रीन नहीं, स्पर्श, संवाद और समय से मिलता है।”
टेक्नोलॉजी से दोस्ती, रिश्तों से दूरी नहीं
टेक्नोलॉजी से रिश्ता तोड़ने की जरूरत नहीं, बल्कि उसके इस्तेमाल को सजग और सीमित करने की जरूरत है। रिश्तों की गर्माहट स्क्रीन की ब्लू लाइट से नहीं मिलती – वह मिलती है एक हल्की मुस्कान, बेमतलब की बातचीत और एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस करने से।
अगर आप भी अपने रिश्ते में ये सूक्ष्म सी दूरी महसूस कर रहे हैं, तो एक दिन फोन को साइड में रखकर सिर्फ बैठिए – एक साथ। शुरुआत यहीं से होती है।