रविवार, जून 15, 2025
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गंगा दशहरा 5 जून को, मां गंगा की कृपा पाने के लिए ध्यान रखें ये 10 दान नियम

हर साल ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला गंगा दशहरा इस बार 5 जून 2025 को पड़ रहा है। यह पर्व न केवल गंगा नदी की आराधना का अवसर है, बल्कि दान, स्नान और संयम से जुड़े सामाजिक मूल्यों को भी उजागर करता है। मान्यता है कि इस दिन मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसे लेकर जनमानस में यह विश्वास है कि इस दिन स्नान और दान से दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।

10 का विशेष महत्व इस पर्व में

गंगा दशहरे पर किए जाने वाले दान की संख्या का महत्व बेहद खास माना गया है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो भी वस्तु दान की जाए, वह ‘दस की संख्या’ में होनी चाहिए—जैसे 10 फल, 10 वस्त्र, 10 मिट्टी के बर्तन आदि। इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि व्यक्ति दस इंद्रियों से संयम रखते हुए समाज की सेवा करे।

इन वस्तुओं का दान न करें

गंगा दशहरा के अवसर पर जहां एक ओर दान का महत्व है, वहीं कुछ वस्तुएं ऐसी भी हैं, जिनका दान करना वर्जित माना गया है। पुरानी, फटी या टूटी वस्तुओं का दान इस दिन अशुभ माना गया है। खासतौर पर बासी भोजन, चाकू, कैंची या नुकीली वस्तुएं न दान करें।

काले रंग के कपड़ों से बचें

काले वस्त्र नकारात्मकता का प्रतीक माने जाते हैं। इनका दान करने से सामाजिक छवि और पारिवारिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं।

चावल और काली दाल का त्याग करें

चूंकि गंगा दशहरा इस बार गुरुवार को है, इसलिए चावल और काली दाल का दान न करने की सलाह दी जाती है। यह आर्थिक और वैवाहिक बाधाओं का कारण बन सकता है।

क्या दान करना होता है शुभ

गंगा दशहरे पर कुछ विशेष वस्तुओं का दान करना पुण्यकारी माना गया है। छाता, टोपी, जूते-चप्पल जैसे गर्मी से बचाने वाली वस्तुएं दान करना इस दिन श्रेष्ठ माना गया है। सत्तू, मौसमी फल, शर्बत, और पानीदार पदार्थों से भरा कलश किसी जरूरतमंद को देना पुण्यदायक है। सूती वस्त्र, गमछा, धोती आदि भी इस दिन दान किए जा सकते हैं। साथ ही कुछ दक्षिणा भी देना श्रेयस्कर है।

सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

गंगा दशहरा न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और सेवा भावना को भी प्रेरित करता है। यह पर्व समाज में जरूरतमंदों के लिए सहानुभूति और सहभागिता की भावना को बढ़ावा देता है। गंगा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए किए गए कार्य पर्यावरणीय जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता का प्रतीक बनते हैं।

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