गंगा दशहरा, सनातन धर्म में आस्था रखने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर बढ़ता एक आध्यात्मिक अवसर है। पुराणों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में गंगा माता का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। यह दिन हर वर्ष ‘गंगा दशहरा’ के रूप में मनाया जाता है।
इस वर्ष यह पर्व 5 जून 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 9:14 बजे तक सिद्धि योग, रवि योग, और हस्त नक्षत्र जैसे पुण्यकारी संयोग भी बन रहे हैं, जिससे स्नान, दान और पूजा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
गंगा अवतरण की पौराणिक कथा और आध्यात्मिक अर्थ
भागीरथ द्वारा अपनी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किए गए प्रयासों के फलस्वरूप गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। इस कारण उन्हें ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है। स्कन्द पुराण में वर्णित है कि भगवान शिव ने गंगाजी की महिमा को स्वीकार करते हुए उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था और उन्हें ‘तीर्थों की श्रेष्ठा’ बताया था।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है, जिसमें मन, वाणी और शरीर से किए गए दोष शामिल हैं।
भगवान शिव और मां गंगा का ध्यान करें
गंगा दशहरा पर प्रातःकाल स्नान के पश्चात गंगा जल से घर के मंदिर और देवताओं का अभिषेक करें। गंगा जल का छिड़काव कर सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान करें। दीप प्रज्वलित करें और भगवान शिव व मां गंगा का ध्यान करें। इस दिन दान का विशेष महत्व है, जिनमें विशेषतः 10 वस्तुओं का दान करना श्रेष्ठ माना जाता है, जैसे मटका, पंखा, शर्बत, फल, वस्त्र आदि शामिल है।
गंगा दशहरा का सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव
गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह समाज में दान, सेवा, शुद्धता और आत्मिक सुधार की प्रेरणा देने वाला पर्व है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और तीर्थस्थलों पर इस दिन विशाल मेले, सामूहिक गंगा स्नान और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
गंगा केवल नदी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धारा का मूल स्रोत मानी जाती हैं। गंगाजल के स्पर्श, दर्शन और स्मरण मात्र से मोक्ष की प्राप्ति का उल्लेख वेदों और शास्त्रों में मिलता है।