रविवार, जून 15, 2025
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धर्म, सेवा और तप के महीने ज्येष्ठ में आएंगे 10 खास पर्व, जानिए कब है निर्जला एकादशी और वट सावित्री व्रत

हिंदू पंचांग का तीसरा महीना ज्येष्ठ महीना 13 मई से शुरू हो गया। अब यह 11 जून 2025 तक चलेगा। यह महीना केवल मौसम की तपिश के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसकी एक विशेष पहचान है। माना जाता है कि इस मास में तप, सेवा, और दान के माध्यम से व्यक्ति न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है, बल्कि समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भी निभाता है।

ज्येष्ठ को ‘जेठ’ के नाम से भी जाना जाता है और इस मास में श्रीराम, हनुमान, सूर्य और वरुण देव की उपासना का विशेष महत्व है। यह वह समय है जब शरीर तपता है और आत्मा तप से निखरती है। इस महीने में पानी का दान, छायादान और जरूरतमंदों की सेवा का विशेष महत्व बताया गया है।

ज्येष्ठ माह के प्रमुख व्रत और पर्व – 2025

ज्येष्ठ मास में अनेक धार्मिक अवसर आते हैं, जो समाज और संस्कृति को जोड़ने का कार्य करते हैं। आइए जानते हैं कौन-कौन से दिन विशेष महत्त्व के हैं:

13 मई – नारद जयंती

ज्ञान, भक्ति और संवाद के प्रतीक नारद मुनि की स्मृति में यह दिन मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इनकी उपासना से बुद्धि, विवेक और भक्ति में वृद्धि होती है।

15 मई – वृषभ संक्रांति

इस दिन सूर्य, मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं। यह समय सूर्योपासना और जल से जुड़े दान के लिए विशेष माना गया है।

16 मई – संकष्टी चतुर्थी

इस दिन विघ्नों को दूर करने वाले श्री गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इससे मानसिक शांति और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

23 मई – अपरा एकादशी

यह एकादशी पापों के नाश और पुण्य लाभ के लिए जानी जाती है। व्रत करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक बल प्राप्त होता है।

24 मई – शनि प्रदोष व्रत

शनि को समर्पित यह दिन उनके दुष्प्रभावों से बचाव और आत्मनिरीक्षण का अवसर माना गया है। इस दिन का उपवास शांति और न्याय के भाव को बल देता है।

26 मई – वट सावित्री व्रत

विवाहित महिलाएं इस दिन वटवृक्ष की पूजा करके पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। यह परंपरा सामाजिक आस्था का प्रतीक है।

27 मई – शनि जयंती व ज्येष्ठ अमावस्या

इस दिन को शनि देव का जन्म दिवस माना जाता है। शमी, पीपल वृक्ष की पूजा, तिल-तेल का अभिषेक और छाया दान जैसे कर्म किए जाते हैं। साथ ही वृद्ध और दिव्यांग जनों की सेवा को अत्यंत पुण्यदायी बताया गया है।

5 जून – गंगा दशहरा

गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के दिन, गंगा स्नान से सारे पापों का नाश होता है। जल की पवित्रता और संरक्षण का यह दिन सामाजिक चेतना को भी दर्शाता है।

6 जून – निर्जला एकादशी

यह व्रत सभी एकादशियों में कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें जल का सेवन भी वर्जित होता है। इसका पालन एकाग्रता, अनुशासन और आत्मसंयम की परीक्षा के समान होता है।

10 जून – वट पूर्णिमा व्रत

विवाहित महिलाएं वटवृक्ष की पूजा कर सौभाग्य और पारिवारिक सुख की कामना करती हैं। यह एक पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने वाला पर्व है।

11 जून – ज्येष्ठ पूर्णिमा

इस दिन स्नान, जप, ध्यान और दान से विशेष फल की प्राप्ति मानी जाती है। यह दिन ज्येष्ठ माह के समापन का प्रतीक है, जहां पूरे मास की साधना और सेवा का सार संकलित होता है।

धार्मिक आस्था और सामाजिक दायित्व का महीना

ज्येष्ठ माह न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति का अवसर है, बल्कि समाज के प्रति कर्तव्य निर्वाह का भी समय है। छाया दान, जल सेवा, भोजन वितरण, वृक्षारोपण और बुजुर्गों की सेवा जैसी परंपराएं इस महीने को धर्म और समाज की कड़ी से जोड़ती हैं।

इस महीने में किए गए छोटे-छोटे कर्म जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं। यह वह समय है जब तप से संयम मिलता है, सेवा से संतोष और आस्था से ऊर्जा।

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