रविवार, जून 15, 2025
spot_img
होमधर्म-संस्कृतिअपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हुए भगवान नृसिंह, ब्रह्मा जी...

अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हुए भगवान नृसिंह, ब्रह्मा जी के वरदान के लिए धरा अद्भूत रूप

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर आज देशभर में नृसिंह प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है। अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु इस दिन आधे नर और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप का वण किया था, जो स्वयं को भगवान मानने लगा था। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक एक अत्याचारी असुर ने कठिन तप से ऐसा वरदान प्राप्त किया था, जिससे वह किसी भी सामान्य उपाय से मारा नहीं जा सकता था। उसने तीनों लोकों पर अधिकार जमाने की कोशिश की और खुद को पूजने की जिद पर अड़ गया।

इस तरह किया हिरण्यकश्यम का वध

कठोर तप से हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से वरदान हासिल किया था कि उसे न कोई दिन में मार सके, न रात में। न घर के बाहर मार सके, न घर के भीतर। न जमीन पर मार सके, न आसमान में। उसे न मानव मार सके न ही कोई पशु। वह न अस्त्र से मरे और न ही शस्त्र से। इस तरह के वरदान से वह खुद को अजर अमर और भगवान समझने लगा और प्रजा पर अत्याचार करने लगा।  उसका पुत्र प्रह्लाद, अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध, विष्णु भक्ति में लीन रहा।

प्रह्लाद की निष्ठा डिगी नहीं, जबकि हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयास किए। अंततः वैशाख शुक्ल चतुर्दशी की संध्या बेला में भगवान विष्णु एक खंभे से प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण उन्होंने आधे नर और आधे सिंह का रूप धारण किया हुआ था। संध्या के समय न दिन था, न रात। वे हिरण्यकश्यप को घसीटकर घर की दहलीज पर ले गए। जो न घर के अंदर थी, न बाहर। इसके बाद उन्होंने अपने नाखूनों से उसका वध किया। जो न अस्त्र थे, न ही शस्त्र। इस तरह भगवान ने अपने भक्त की रक्षा के लिए यह अद्भूत रूप धारण किया।

धार्मिक अनुष्ठान और समाज में इसका प्रभाव

नरसिंह जयंती के दिन भक्तजन उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष हवन होते हैं और भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप किया जाता है। कई स्थानों पर सांस्कृतिक आयोजन, भजन संध्याएं, और धार्मिक कथाएं भी होती हैं, जिनमें लोग इस कथा के आध्यात्मिक संदेश को साझा करते हैं।

जहां अधर्म का अंत और सत्य की रक्षा का संदेश गूंजता है। यह पर्व पीढ़ियों से यह सिखाता आया है कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की रक्षा भी है।

अन्य खबरें