वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जानेव वाला भगवान नृसिंह का जन्मोत्सव इस बार 11 मई, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु ने एक अद्भुत रूप धारण कर अपने भक्त की रक्षा की और अधर्म का अंत किया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर अपने भक्त बालक प्रह्लाद की रक्षा की थी। हिरण्यकश्यप के अत्याचार से व्याकुल धरती को इस स्वरूप में प्रभु ने मुक्ति दिलाई। हिरण्यकश्यप के वध के बाद भी भगवान शांत नहीं हुए तो बालक प्रहलाद ने उनसे शांत होने की प्रार्थना की। जिस पर भगवान प्रसन्न हुए और प्रहलाद को कई वरदान दिए। इसलिए भगवान नृसिंह को बच्चों से विशेष स्नेह है और उनकी कृपा बच्चों पर हमेशा बनी रहती है।
पर्व की तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचांग गणना के अनुसार, वैशाख शुक्ल चतुर्दशी 10 मई को शाम 5:29 बजे से प्रारंभ होकर 11 मई को रात 9:19 बजे तक रहेगी। इसी आधार पर पर्व 11 मई को मनाया जाएगा, जब दिनभर उपवास, ध्यान और पूजा के साथ श्रद्धालु इस दिन को पवित्र करेंगे।
पूजा-व्रत की विधि और धार्मिक परंपराएं
नृसिंह प्राकट्योत्सव पर व्रत रखने की परंपरा है, जो धार्मिक अनुशासन और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक मानी जाती है। पूजा विधि में शामिल हैं:
- सुबह स्नान करके साफ और पवित्र वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और पीले या लाल वस्त्र पर भगवान नृसिंह की प्रतिमा या विष्णु का चित्र स्थापित करें।
- पंचामृत स्नान, चंदन-हल्दी, पीले पुष्प, फल और गुड़-चना का भोग अर्पण करें।
- तुलसी दल का उपयोग विशेष रूप से आवश्यक माना गया है।
- घी का दीपक जलाकर भगवान नृसिंह के मंत्रों का जाप करें।

इन मंत्रों के माध्यम से श्रद्धालु संकटों से मुक्ति और भय नाश की कामना करते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
नृसिंह जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। यह दिन हमें सिखाता है कि अन्याय, अत्याचार और अधर्म चाहे जितना भी बलवान हो, सत्य और श्रद्धा की शक्ति अंततः विजय प्राप्त करती है।
व्रत-पूजन के साथ दान करने की परंपरा भी इस दिन को सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है। जरूरतमंदों की सहायता, समाज में समरसता और करुणा का भाव जगाने का भी यह एक उत्तम अवसर है।