रविवार, जून 15, 2025
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सबसे कठिन व्रत है निर्जला एकादशी, नियमों के साथ करें तो मिलता है सभी एकादशियों का फल

हर वर्ष आने वाली 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी का विशेष स्थान है, जो ना केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है, बल्कि आत्म अनुशासन और त्याग की भी चरम परीक्षा है। इस व्रत का पालन जेठ माह की भीषण गर्मी में किया जाता है, जब तपती धूप और बढ़ता तापमान शारीरिक संतुलन को चुनौती देता है। इस दिन उपासक न केवल अन्न का त्याग करते हैं, बल्कि एक बूंद भी जल ग्रहण नहीं करते। यही कारण है कि इसे ‘निर्जला’ एकादशी कहा जाता है।

निर्जला व्रत को लेकर धार्मिक मान्यता है कि जो श्रद्धालु इस एक व्रत को पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ करता है, उसे पूरे वर्ष की सभी 24 एकादशियों के पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यह परंपरा समाज में आध्यात्मिक अनुशासन और संयम की चेतना को पुष्ट करती है।

पांच कठोर नियम जो इसे बनाते हैं सबसे कठिन

  1. जल और अन्न का पूर्ण त्याग
    इस दिन फलाहार, जलाहार या किसी भी तरह का पेय पदार्थ सेवन नहीं किया जाता। व्रती को सूर्योदय से अगले दिन प्रातः तक एक बूँद जल तक ग्रहण नहीं करना होता।
  2. भीषण गर्मी में व्रत पालन
    यह एकादशी जेठ मास की चिलचिलाती गर्मी में आती है। इसलिए निर्जल रहना न केवल आध्यात्मिक बल्कि शारीरिक दृढ़ता की भी परीक्षा होती है।
  3. वाणी और व्यवहार में संयम
    व्रतधारी को दिन भर मधुर वाणी बोलने, किसी से वाद-विवाद न करने और शांत भाव से समय व्यतीत करने की सीख दी जाती है।
  4. ब्रह्मचर्य और मानसिक शुद्धता का पालन
    इस दिन शरीर, मन और वचन से पूर्ण संयम आवश्यक होता है। सांसारिक विषयों से दूरी बनाकर प्रभु स्मरण में लीन रहना श्रेयस्कर माना गया है।
  5. रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन में सहभागिता
    इस एकादशी की रात को सोना वर्जित होता है। व्रतधारी को रात्रि जागरण कर प्रभु के नाम का संकीर्तन करना चाहिए जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

समाज में निर्जला एकादशी का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव

व्रत केवल व्यक्तिगत तपस्या नहीं, समाज में धर्मपालन और अनुशासन की मिसाल भी है। अनेक समुदायों में इस दिन सामूहिक भजन संध्याएं, सत्संग और जरूरतमंदों को जल वितरण जैसे सामाजिक कार्य भी होते हैं। नगरों और गाँवों में कई जगह छबील और जलसेवा की परंपरा इस दिन विशेष रूप से निभाई जाती है।

निर्जला एकादशी इस बात की याद दिलाती है कि धर्म केवल रीति नहीं, बल्कि एक आचरण प्रणाली है जिसमें तन, मन और कर्म तीनों की शुद्धता का विशेष महत्व होता है।

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