रविवार, जून 15, 2025
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निर्जला एकादशी पर 6 जून को ग्रहों का दुर्लभ संयोग, मेष-मिथुन-सिंह राशि वालों को मिल सकते हैं जीवन के विशेष वरदान

हर साल गंगा दशहरा के बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह एकादशी 6 जून को मनाई जाएगी। इस मौके एक खास संयोग बन रहा है। तीन प्रमुख ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति की युति बन रही है, जिससे यह दिन समाज, परिवार और आत्मिक विकास के लिए अत्यंत शुभ बन रहा है।

यह व्रत विशेष रूप से कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें जल तक का त्याग किया जाता है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, यह व्रत सभी एकादशियों के फल के बराबर माना गया है। इसलिए इसे ‘महाएकादशी’ भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के पात्र भीम ने जब नियमित एकादशी व्रत रखने में असमर्थता जताई, तो उन्हें सलाह दी गई कि वे वर्ष में केवल एक बार निर्जला एकादशी का व्रत रखकर समस्त पुण्य अर्जित कर सकते हैं। इस व्रत से न केवल पापों का प्रायश्चित होता है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

शुक्र का गोचर
31 मई को शुक्र मेष राशि में प्रवेश करेंगे और 29 जून तक यहीं स्थित रहेंगे। शुक्र धन, सौंदर्य और ऐश्वर्य का प्रतीक है। इसके प्रभाव से सामाजिक प्रतिष्ठा और भौतिक सुखों में वृद्धि की संभावनाएं बनेंगी।

बुध-बृहस्पति की युति:
बृहस्पति पहले ही मिथुन राशि में विराजमान हैं, और 6 जून को बुध भी इसी राशि में प्रवेश करेंगे। इन दोनों ग्रहों की युति सामाजिक संवाद, निर्णय क्षमता और विचारों की स्पष्टता को प्रबल करेगी। यह संयोजन विशेष रूप से शैक्षिक, प्रशासनिक और रचनात्मक क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों के लिए लाभकारी हो सकता है।

राशियों पर निर्जला एकादशी का विशेष प्रभाव

मेष राशि:
इस राशि के लिए यह व्रत शुभ संकेत लेकर आया है। विवाह से जुड़े मामलों में प्रगति होगी। कार्यस्थल पर प्रमोशन और सम्मान मिल सकता है। सरकारी नौकरी की चाहत रखने वालों के लिए यह समय अनुकूल रहेगा। परिवार में मेलजोल और प्रेम बढ़ेगा।

मिथुन राशि:
बुध और बृहस्पति की युति से मिथुन राशि वालों को सामाजिक और आर्थिक लाभ के संकेत हैं। बच्चों से जुड़ी चिंताओं का समाधान होगा। कार्यक्षेत्र में मान-सम्मान में वृद्धि होगी। वैवाहिक जीवन में स्थिरता आएगी और प्रेम संबंधों को सामाजिक स्वीकृति मिल सकती है।

सिंह राशि:
इस एकादशी का प्रभाव सिंह राशि पर मानसिक और पारिवारिक संतुलन के रूप में दिखाई देगा। तनाव में कमी आएगी, भूमि या संपत्ति संबंधी विवाद सुलझ सकते हैं। नेतृत्व क्षमता बढ़ेगी और समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।

धार्मिक परंपराओं में विज्ञान और समाज का संतुलन

निर्जला एकादशी जैसे व्रत भारतीय संस्कृति में केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक अनुशासन और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक हैं। तप, संयम और आस्था का यह संगम न केवल व्यक्ति को अंदर से मजबूत बनाता है, बल्कि समाज में सकारात्मक ऊर्जा और सहयोग की भावना को भी बढ़ाता है।

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