रविवार, जून 15, 2025
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निर्जला एकादशी रवि और सिद्धी योग, तुलसी पूजन और भगवान विष्णु के ध्यान से मिलेगी समृद्धि

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का स्थान अत्यंत विशेष है। इसे सभी एकादशियों में श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को वर्षभर की सभी 24 एकादशियों का पुण्यफल प्राप्त होता है।

पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी 2025 की तिथि 6 जून को रात 2:15 बजे प्रारंभ होकर 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी। चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, गृहस्थ समाज इस दिन व्रत का पालन करेगा, जबकि वैष्णव परंपरा से जुड़े साधु-संत 7 जून को यह व्रत करेंगे।

इस बार विशेष बात यह है कि एक ही व्रत दो अलग-अलग नक्षत्रों में आ रहा है। 6 जून को हस्त नक्षत्र और 7 जून को चित्रा नक्षत्र रहेगा। जिससे इसे और अधिक पुण्यकारी माना जा रहा है।

समाज में निर्जल उपवास की भूमिका

निर्जला एकादशी केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि समाज में संयम, श्रद्धा और पर्यावरण के प्रति संवेदना की भी अभिव्यक्ति है। जेठ महीने की चिलचिलाती गर्मी में जल त्यागकर उपवास रखना किसी तप से कम नहीं। यह व्रत लोगों को आत्मनियंत्रण, सहनशीलता और आत्मशुद्धि की प्रेरणा देता है।

तुलसी पूजन और आस्था के प्रतीक

इस दिन भगवान विष्णु की आराधना तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप मानकर पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी पूजी जाती है, वहां सात्त्विकता और शांति का वास होता है। विशेषत: निर्जला एकादशी पर तुलसी के समक्ष दीप जलाकर भक्ति भाव से पूजन करने की परंपरा गहरे सामाजिक मूल्यों को दर्शाती है।

बन रहे तीन शुभ योग

इस वर्ष निर्जला एकादशी पर शिव योग, सिद्ध योग और त्रिपुष्कर योग जैसे पुण्यकारी संयोग बन रहे हैं। ये योग किसी भी धार्मिक साधना को और अधिक प्रभावकारी बनाते हैं। इन योगों में पूजा-पाठ, व्रत और दान का विशेष महत्व माना गया है

व्रत एवं पूजा विधि

सुबह स्नान के पश्चात गंगा जल से भगवान विष्णु का अभिषेक, पीले फूल और वस्त्रों से पूजन, तथा तुलसी दल अर्पण की परंपरा इस दिन निभाई जाती है। पूरे दिन व्रत के साथ ध्यान, मंत्र-जप और धार्मिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है। दूसरे दिन यानी द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत पारण किया जाता है। इस व्रत के दौरान समाज में दान-पुण्य की भी परंपरा जीवंत रहती है। जरूरतमंदों को अन्न-वस्त्र और जलदान किया जाता है।

एकादशी पर रखें इन बातों का ध्यान

निर्जला एकादशी पर कुछ सावधानियां भी उल्लेखनीय हैं। तुलसी को जल नहीं देना, चावल या अक्षत का प्रयोग न करना और राजसिक खाद्य पदार्थों से परहेज सामाजिक अनुशासन की भावना को दर्शाते हैं। यह संयम न केवल आध्यात्मिक शुद्धि के लिए, बल्कि व्यक्तिगत अनुशासन और सामाजिक मर्यादा के प्रतीक भी हैं।

भीमसेन से जुड़ी कथा

महाभारत काल में जब पांडव पुत्र भीम ने स्वयं भूखा रहने की कठिनाई जताई, तो उन्हें बताया गया कि यदि वे निर्जल रहकर केवल एक एकादशी का पालन करें, तो उन्हें सभी व्रतों का पुण्य प्राप्त हो सकता है। यही प्रसंग इसे भीमसेनी एकादशी के रूप में भी स्थापित करता है।

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