इस वर्ष शनि जयंती 27 मई 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह दिन न्याय, कर्म और संतुलन के प्रतीक शनि ग्रह के प्राकट्य का पर्व है, जिसे देशभर में श्रद्धा और आत्मविचार के साथ मनाया जाता है। धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से यह दिन आत्मनिरीक्षण, विनम्रता और जीवन की दिशा को सुधारने का अवसर माना जाता है।
शनि को कर्मों का द्रष्टा माना गया है जो व्यक्ति जैसा करता है, वैसा फल उन्हें मिलता है। इसलिए इस दिन समाज में अनेक लोग नकारात्मक आदतों के त्याग और सकारात्मक जीवन मूल्य अपनाने का संकल्प लेते हैं।
यदि आप भी शनिदेव की कृपा चाहते हैं, इस साल शनि जयंती पर पांच ऐसी आदतें छोड़ने का संकल्प लीजिए, जिनसे शनिदेव नाराज होते हैं।
1. झूठ और धोखे से दूर रहें
शनि के साथ न्याय और ईमानदारी का गहरा संबंध है। इस दिन यह संकल्प लेना कि किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलेंगे, किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करेंगे, शनि की कृपा पाने का एक मजबूत मार्ग बन सकता है। यह न केवल व्यक्तिगत सुधार का संकेत है, बल्कि समाज में पारदर्शिता और भरोसे की संस्कृति को भी बढ़ावा देता है।
2. काले रंग का विवेकपूर्ण प्रयोग
काले रंग को शनि का प्रतिनिधि माना गया है, लेकिन इसका अंधविश्वासों या किसी के विरुद्ध प्रयोग को सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से अनुचित माना जाता है। इस दिन काले वस्त्रों का दान, जरूरतमंदों को छाया प्रदान करना या ईमानदारी से इसका प्रयोग करना, आध्यात्मिक स्थिरता का प्रतीक बन सकता है।
3. मांस-मदिरा का त्याग
तामसिक प्रवृत्तियों से दूरी बना कर व्यक्ति अपनी मानसिक और आत्मिक शक्ति को बेहतर कर सकता है। शनि जयंती पर मांसाहार और शराब जैसी आदतों से दूरी बनाने का निर्णय, समाज में संयम और शांति की भावना को प्रोत्साहित करता है। यह त्याग समाज के लिए भी प्रेरणादायक बन सकता है।
4. क्रोध और अहंकार पर नियंत्रण
शनि को धैर्य, गंभीरता और नम्रता का प्रतीक माना जाता है। यदि व्यक्ति जीवन में क्रोध और घमंड जैसे व्यवहारों पर नियंत्रण कर ले, तो यह उसके आत्म-विकास के साथ-साथ पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में भी सुधार ला सकता है। यह शनि की दृष्टि को सौम्य करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
5. अनुशासन और बुज़ुर्गों का सम्मान
अनुशासन और बड़ों का सम्मान, दोनों ही सामाजिक मूल्यों की नींव हैं। शनि को पितृकारक माना जाता है—इस दिन यदि कोई व्यक्ति यह संकल्प ले कि वह जीवन में अनुशासित रहेगा, और माता-पिता या बुज़ुर्गों का सम्मान करेगा, तो यह न केवल आध्यात्मिक लाभ बल्कि समाज में सद्भावना का वातावरण भी बना सकता है।
शनि जयंती पर सामाजिक संदेश और आध्यात्मिक जागरूकता
शनि जयंती के दिन मंदिरों में विशेष पूजा, दान और सेवा कार्य किए जाते हैं। कई स्थानों पर तेल से अभिषेक, दीपदान, गरीबों को भोजन कराना और काले तिल या कंबल का दान करने की परंपरा है। इन धार्मिक क्रियाओं के पीछे का उद्देश्य आत्म-शुद्धि और समाज सेवा है, न कि केवल कर्मकांड।
यह पर्व हर व्यक्ति को यह स्मरण कराता है कि अपने कर्मों की ज़िम्मेदारी लेना, समाज के प्रति ईमानदारी रखना और आत्म-संयम बनाए रखना ही सच्चा आध्यात्मिक मार्ग है।