सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु के 10 विधेयकों को रोकने के राज्यपाल आर.एन. रवि के फैसले को अवैध करार दिया। अदालत ने इस फैसले को “मनमाना” और “संवैधानिक दायरे से बाहर” बताया। यह सुनवाई मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सरकार द्वारा दायर याचिका पर हुई, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल ने बिना कोई ठोस कारण बताए विधेयकों को या तो लौटा दिया या राष्ट्रपति को भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया संवैधानिक पालन का संदेश
कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ – जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन ने राज्यपाल को स्पष्ट निर्देश दिए कि वे किसी भी विधेयक पर निर्णय तय समय-सीमा में लें। बेंच ने कहा कि राज्यपाल को एक “उत्प्रेरक” की भूमिका में रहना चाहिए, न कि “अवरोधक” की। उन्होंने संविधान की शपथ ली है, न कि किसी राजनीतिक दल की सेवा के लिए।
स्टालिन ने फैसले को बताया ऐतिहासिक
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कोर्ट के फैसले को “राज्य सरकारों की जीत” बताते हुए कहा कि यह भारत में संघीय ढांचे की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का रवैया लोकतंत्र के लिए खतरनाक था और अब संविधान की प्रतिष्ठा बहाल हुई है।
पृष्ठभूमि: 2021 से चला आ रहा विवाद
राज्यपाल आर.एन. रवि और स्टालिन सरकार के बीच 2021 से ही रिश्ते तनावपूर्ण हैं। राज्यपाल पर कई बार आरोप लगे कि वे बीजेपी प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं और जानबूझकर नियुक्तियां और विधेयक रोक रहे हैं। यह मामला पहले भी नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है।
संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं — मंजूरी देना, रोकना, राष्ट्रपति को भेजना या विधानसभा को पुनर्विचार के लिए भेजना। लेकिन यदि विधानसभा विधेयक को दोबारा पास करती है, तो राज्यपाल को मंजूरी देनी ही होगी। इस प्रक्रिया में देरी संविधान के खिलाफ है।

- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को रोकना या राष्ट्रपति को भेजना अवैध और मनमाना बताया गया।
- राज्यपाल की भूमिका पर टिप्पणी: कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को उत्प्रेरक बनकर कार्य करना चाहिए, बाधक नहीं; उन्हें संविधान के अनुसार काम करना होगा।
- स्टालिन की प्रतिक्रिया: मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए इसे राज्यों की जीत बताया।
- संवैधानिक प्रक्रिया की व्याख्या: अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा द्वारा दोबारा पास किए गए बिलों को राज्यपाल रोक नहीं सकते।
- राज्यपाल और सरकार के बीच विवाद: 2021 से राज्यपाल और डीएमके सरकार के बीच खींचतान जारी है, मामला पहले भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।