वट सावित्री व्रत आज (26 मई) को मनाया जा रहा है। हालाकि कई जगहों पर यह मंगलवार को भी मनाया जाएगा। इस बार वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या का संयोग श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष अवसर लेकर आया है। वट सावित्री व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाता है। वे अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना करते हुए उपवास रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। यह पूजा पारंपरिक रूप से वट वृक्ष के नीचे की जाती है, जहां महिलाएं कच्चा सूत लपेटकर पेड़ की परिक्रमा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण करती हैं।
इस व्रत में बरगद यानी वटवृक्ष की पूजा का ही सबसे बड़ा महतव है। इस वृक्ष के बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है, लेकिन कई बार कई जगहों पर बरगद का पेड़ मिलना मुश्किल होता है। इस स्थिति में घबराने की कतई आवश्यकता नहीं है। ऐसे भी उपाय हैं, जिनके माध्यम से बरगद के पेड़ के बिना ये पूजा पूरी की जा सकती है।
आसपास पेड़ न हो तो क्या करें
- फल सहित वट वृक्ष की टहनी लाकर किसी गमले में लगाएं और उसी को प्रतीक रूप में पूजें।
- पूजा स्थल पर भगवान शिव और माता पार्वती की तस्वीर रखें और उसी के पास वृक्ष पूजन करें।
- यदि वट वृक्ष की टहनी लाना भी संभव न हो, तो तुलसी के पौधे के पास बैठकर वट सावित्री व्रत की पूजा की जा सकती है।
धार्मिक महत्व: क्यों खास है वट वृक्ष की पूजा
हिंदू संस्कृति में वट वृक्ष (बरगद का पेड़) जीवन, दीर्घायु और अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है।
इस वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करना, तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर परिक्रमा करना और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनना व्रत की प्रमुख विधि है। महिलाएं इस दिन पूरे संयम, श्रद्धा और सादगी से उपवास करती हैं।
सोमवती अमावस्या का आध्यात्मिक पक्ष
सोमवती अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण और ब्राह्मणों को दान देने की परंपरा है। यह दिन आत्मिक शुद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस अवसर पर कई लोग व्रत रखकर मौन धारण करते हैं और ध्यान साधना करते हैं।
वट सावित्री व्रत 2025: तिथि, मुहूर्त और शुभ संयोग
- अमावस्या तिथि: 26 मई 2025 को दोपहर 12:11 बजे से शुरू होकर 27 मई को सुबह 8:31 बजे तक रहेगी।
- भरणी नक्षत्र: सुबह 8:23 बजे तक
- शोभन और अतिगण्ड योग: दिनभर
- अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक
पूजा विधि और सामग्री
सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, सप्तधान्य से भरी बांस की टोकरी, धूप, दीप, लाल कलावा, भिगोया हुआ चना, बड़ का फल, सुहाग की वस्तुएं, जल भरा कलश, मौली, फूल और घी।
- प्रातः स्नान के बाद घर की सफाई कर शुद्ध जल का छिड़काव करें
- ब्रह्मा और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें
- वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित कर पूजा करें
- वृक्ष के चारों ओर सूत लपेटकर तीन परिक्रमा करें
- सावित्री कथा का श्रवण करें और दूसरों को सुनाएं
- पूजन के बाद सास को बायना अर्पित करें और ब्राह्मणों को दान दें
सावित्री-सत्यवान की कथा
सावित्री, महाराज अश्वपति की एकमात्र संतान थीं। उन्होंने अल्पायु राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में चुना।उनके निर्णय पर स्वयं नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं। इसके बाद भी सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही। वे अपने पति के साथ रहकर सास–ससुर की सेवा करती थी।
जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए तो सावित्री ने यमराज से प्रार्थना की कि वे उनके पति को छोड़ दें, लेकिन यमराज नहीं माने। जिस पर वे उनके पीछे-पीछे चलती रहीं और उनके साथ धर्म, सत्य और तप की बात करती रहीं। यमराज ने उन्हें कई बार वापस जाने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं मानी। अंत में यमराज उनसे प्रसन्न हुए और तीन वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने यमराज से वरदान में अपने ससुर का राज्य, नेत्रज्योति और सौ पुत्रों की इच्छा मांगी। यमराज को अंततः उनका दृढ़ संकल्प स्वीकार करना पड़ा और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दिया। तभी से यह व्रत अखंड सौभाग्य की प्रतीक परंपरा बन गया।