कभी आपने महसूस किया है कि रिश्ते में सबकुछ होते हुए भी कुछ अधूरा रह जाता है? एक परफेक्ट लगती ज़िंदगी में भी कभी-कभी ऐसा खालीपन होता है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है- खासतौर पर महिलाओं के लिए, जिनकी भावनात्मक और फिजिकल ज़रूरतें अक्सर अनदेखी रह जाती हैं।
मैंने दिल्ली में एक वेलनेस रिट्रीट में थी, तो वहां एक इंटरेस्टिंग वर्कशॉप हुई—“संवाद और सहमति का महत्व”। वहां देश-विदेश की कई महिलाओं ने साझा किया कि कैसे उनके लंबे रिश्तों में भी उनकी इंटीमेसी को ‘Expected’, न कि ‘Respected’ माना गया। जापान, कनाडा और अमेरिका से आई महिलाओं ने इसपर हामी भरी। तब मुझे एहसास हुआ कि यह सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि एक वैश्विक सच्चाई है।
भारत में रिश्तों को अक्सर पुरुष की इच्छाओं के इर्द-गिर्द गढ़ा जाता है। “मर्द है, उसे तो ज़रूरत होती है” जैसी सोच अब भी प्रचलित है। मगर इस male-centric सोच का असर महिलाओं की आत्मछवि और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। कई महिलाएं इसे ‘नॉर्मल’ मानकर चुप रहती हैं, जबकि अंदर ही अंदर एक स्वस्थ जीवनशैली और खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए तरसती हैं।
मन की बात: क्यों ज़रूरी है महिलाओं की इच्छाओं को सुनना?
महिला हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. सृष्टि मलिक कहती हैं, “रिश्ते में सहमति सिर्फ ‘ना’ कहने का हक नहीं देती, बल्कि अपनी इच्छाएं जाहिर करने की भी आज़ादी देती है।” मानसिक और शारीरिक संतुष्टि दोनों का जुड़ाव ही एक गहरे और संतुलित रिश्ते की नींव है।
जो महिलाएं अपनी इच्छाओं को दबा देती हैं, उनमें अनचाही एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन और आत्म-संदेह बढ़ने लगता है। यह सिर्फ एक निजी अनुभव नहीं, बल्कि एक लाइफस्टाइल डिसबैलेंस है जो रोज़मर्रा की डेली रूटीन टिप्स तक को प्रभावित करता है—खाना न ठीक से खाना, नींद का प्रभावित होना, और सोशल लाइफ से दूरी बनाना।
समाधान: बातचीत और छोटे बदलाव
1. ओपन कम्युनिकेशन शुरू करें
रिश्ते में संवाद ही पहला कदम होता है। अपनी ज़रूरतों को बिना गिल्ट के साझा करें। एक कप चाय के साथ हल्की बातचीत शुरू करिए, गहराई अपने आप आ जाएगी।
2. माइंडफुलनेस प्रैक्टिस में शामिल करें
हर दिन 10 मिनट खुद के साथ बैठिए। इस माइंडफुलनेस अभ्यास से आप अपने भीतर की आवाज़ सुन पाएंगे—क्या आप सच में संतुष्ट हैं? क्या कोई बात आपको परेशान कर रही है?
3. रिलेशनशिप रिचार्ज रूटीन
हर हफ्ते एक ऐसा समय निकालें जब आप दोनों सिर्फ एक-दूसरे के लिए हों—बिना फोन, बिना टीवी। स्वस्थ जीवनशैली में इमोशनल क्लोज़नेस भी उतनी ही अहम है जितनी फिटनेस।
4. खुद को गिल्ट-फ्री एक्सप्रेस करें
महिलाएं अक्सर “मैं सेल्फिश तो नहीं लगूंगी?” सोचती हैं। ये सोच छोड़िए। एक हेल्दी रिश्ता वही होता है जहां mutual satisfaction का स्थान हो।
आख़िर में…
रिश्ते सिर्फ निभाने के लिए नहीं होते, उन्हें जीना होता है। और उस जीने में अगर एक की इच्छाएं दब रही हों, तो वो रिश्ता अधूरा ही रहता है। यह बदलाव एक दिन में नहीं आएगा, लेकिन हर दिन की छोटी पहलें बड़ा असर लाती हैं।
कभी-कभी खुद से ये सवाल पूछना जरूरी होता है: “मैं सिर्फ निभा रही हूं या सच में जुड़ी हूं?” जवाब जितना ईमानदारी से होगा, रास्ता उतना ही साफ़ दिखाई देगा।
