हर साल 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे मनाया जाता है, जो एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। यह बीमारी बहुत कम लोगों में पाई जाती है, लेकिन इसके प्रभावी इलाज और सही पहचान के लिए चिकित्सा क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। हीमोफीलिया, खून के थक्के जमने की प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण शरीर से बह रहे खून को रोकने में असमर्थता का कारण बनता है।
भारत में हीमोफीलिया
भारत में हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या काफी अधिक है, और इस मामले में देश दूसरे नंबर पर आता है। यहां करीब 1.3 लाख लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज के खून का थक्का बनने का सामान्य प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे खून का बहाव लगातार होता रहता है। खासकर पुरुषों में यह रोग अधिक पाया जाता है, जबकि महिलाओं में इसका खतरा कम होता है।
हीमोफीलिया के प्रकार
हीमोफीलिया के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो खून के थक्के जमने की प्रक्रिया पर असर डालते हैं:
हीमोफीलिया A: यह बीमारी क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कमी के कारण होती है।
हीमोफीलिया B: यह बीमारी क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी से होती है।
हीमोफीलिया C: यह क्लॉटिंग फैक्टर XI की कमी के कारण होता है, जो कि कम सामान्य है और आमतौर पर ए और बी की तुलना में हल्का होता है।
हीमोफीलिया के लक्षण स्थिति की गंभीरता के अनुसार भिन्न हो सकते हैं, जिससे इलाज के तरीके भी बदलते हैं।
हीमोफीलिया का इलाज: शुरुआती जांच और टेस्ट
हीमोफीलिया के उपचार से पहले, एक उचित जांच प्रक्रिया जरूरी होती है। डॉक्टर मरीज की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानकारी जुटाते हैं और फिर कुछ खास परीक्षणों से बीमारी का पता लगाते हैं।
कंप्लीट ब्लड टेस्ट (CBC): इस टेस्ट के जरिए मरीज के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा की जांच की जाती है। आमतौर पर हीमोफीलिया से प्रभावित व्यक्तियों का हीमोग्लोबिन स्तर सामान्य रहता है, लेकिन जिन मरीजों में अत्यधिक रक्तस्राव होता है, उनके रेड ब्लड सेल्स का काउंट कम हो सकता है।
क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट: इस टेस्ट के द्वारा यह पता चलता है कि खून का थक्का बनने की प्रक्रिया सामान्य है या नहीं। यह ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसी समस्याओं के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।
फाइब्रिनोजन टेस्ट और अन्य क्लॉटिंग टेस्ट: ये टेस्ट खून के थक्के के बनने के समय को मापने के लिए किए जाते हैं, जो यह निर्धारित करने में मदद करते हैं कि हीमोफीलिया की स्थिति कितनी गंभीर है।

- 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे मनाया जाता है, जो एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जिसमें खून का थक्का बनने की प्रक्रिया सही से काम नहीं करती है।
- भारत में लगभग 1.3 लाख हीमोफीलिया के मरीज हैं, जो इस बीमारी से पीड़ित हैं।
- हीमोफीलिया के तीन प्रकार होते हैं: A, B, और C, जिनका इलाज अलग-अलग होता है।
- इस बीमारी की पहचान के लिए ब्लड टेस्ट, क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट, और फाइब्रिनोजन टेस्ट जरूरी होते हैं।
- विशेषज्ञ डॉ. मीत कुमार के अनुसार, समय रहते इलाज से मरीज की जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
