चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि की पूजा को समर्पित होता है। इस दिन देवी के कालरात्रि स्वरूप की उपासना की जाती है। मां कालरात्रि का रूप देखने में अत्यंत उग्र होता है, लेकिन वे भक्तों के लिए कल्याणकारी मानी जाती हैं। उनका यह स्वरूप नारी शक्ति के साहस और प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने की प्रेरणा देता है।
मां कालरात्रि का वर्ण काला होता है और वे गर्दभ (गधे) की सवारी करती हैं। उनके बाल बिखरे रहते हैं और गले में नरमुंडों की माला होती है। चार भुजाओं में से एक हाथ में तलवार और दूसरे में लोहे का कांटा होता है। शेष दो हाथों में वर और अभय मुद्रा होती है।
मां कालरात्रि पूजा विधि: नियम और आस्था का संगम
प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मां कालरात्रि की पूजा का संकल्प लें। पूजा स्थल पर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। दीप जलाकर धूप अर्पित करें और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से माता को स्नान कराएं।
लाल रंग के फूल, रोली और अक्षत अर्पित करें। मां को गुड़ और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। फिर मां कालरात्रि के निम्न मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें:
मंत्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः”
आरती करें और प्रसाद का वितरण करें।
मां कालरात्रि व्रत नियम: सात्विकता और संयम का पालन
- व्रतधारी को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
- पूरे दिन निराहार रहकर मां का स्मरण करें।
- क्रोध, झूठ और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें और मन, वाणी तथा कर्म से शुद्ध रहें।
- कन्याओं को भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा भेंट करें।
मां कालरात्रि पूजा का महत्व: भय का अंत और शक्ति की प्राप्ति
मां कालरात्रि की पूजा से जीवन में भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। साधक का आत्मबल बढ़ता है और उसे आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। यह पूजा विशेष रूप से तांत्रिक क्रियाओं से सुरक्षा और व्यापार में सफलता के लिए की जाती है।
नवरात्रि के इस दिन की गई साधना से जीवन में शुभता आती है और साधक को सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां कालरात्रि की कृपा से रोग, दुर्घटना और दरिद्रता का नाश होता है।