हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन मनाई जाने वाली गंगा सप्तमी इस वर्ष 3 मई 2025 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन मां गंगा महाराजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हाेकर पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। भारतीय संस्कृति में गंगा न केवल जल की स्रोत, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और धार्मिक एकता का प्रतीक मानी जाती है। गंगा सप्तमी की तिथि 3 मई को सवेरे 7:51 बजे से शुरू होगी और 4 मई को सुबह 07:18 बजे तक रहेगी।
इस बार गंगा सप्तमी पर त्रिपुष्कर योग, शिववास योग, रवियोग, और पुनर्वसु व पुष्य नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बन रहा है। धर्म-संस्कृति से जुड़े समुदायों में इन योगों को पुण्य वृद्धि और आत्मिक कल्याण का अवसर माना जाता है।
गंगाजल का महत्व: पवित्र जल की शक्ति और सामाजिक प्रभाव
जो श्रद्धालु गंगा तट तक नहीं पहुंच पाते, वे गंगाजल को स्नान जल में मिलाकर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय समाज में शुद्धता, शांति और सकारात्मक ऊर्जा के विस्तार का एक माध्यम है। घर में गंगाजल का छिड़काव नकारात्मकता को दूर करता है और मानसिक संतुलन को सशक्त बनाता है।
गंगा सप्तमी की पूजा विधि
- प्रातः स्नान के बाद पूजा स्थान पर दीप प्रज्वलित करें।
- देवी गंगा का ध्यान कर गंगाजल से अभिषेक करें।
- पुष्प अर्पित कर आरती करें और गाय के घी का दीपक जलाएं।
- इस दिन विशेषकर जल से भरी मटकी, अन्न या वस्त्र का दान करना अत्यंत फलदायी माना गया है।
तीन विशेष योग: पुण्य को कई गुना बढ़ाने वाले संयोग
इस बार गंगा सप्तमी पर तीन विशेष योगों का प्रभावशाली संगम बन रहा है:
- त्रिपुष्कर योग: इस योग में किया गया प्रत्येक धार्मिक कर्म तीन गुना फल देता है।
- शिववास योग और रवियोग: ये योग आध्यात्मिक सफलता और देव अनुग्रह की स्थिति लाते हैं।
- पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र: इन नक्षत्रों में स्नान और ध्यान मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं।
धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गंगा का स्थान
गंगा को भारतीय धर्म और समाज में केवल नदी नहीं, बल्कि संस्कृति की धारा कहा गया है। देवी गंगा को विष्णुपदी, भागीरथी, शुभ्रा जैसे नामों से जाना जाता है, जो उनके विभिन्न रूपों और शक्तियों को दर्शाते हैं। यह पर्व धार्मिक एकता, समाज में नैतिक शुद्धता और सांस्कृतिक आस्था की मजबूती का प्रतीक बन चुका है।
गंगा सप्तमी न केवल पूजा का दिन है, बल्कि धार्मिक सामाजिक चेतना और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर भी है।