पहलगाम में आतंकी हमले के विरोध में पाकिस्तान के साथ 65 साल पुराना सिंधु जल समझौता रद्द होने के बाद अब भारत ने इस पर अमल शुरू कर दिया है। शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर और जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल शामिल थे।
बैठक के बाद सीआर पाटिल ने स्पष्ट किया कि सिंधु जल संधि को समाप्त करने की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जाएगी। उन्होंने दो टूक कहा, “पाकिस्तान को अब एक बूंद पानी नहीं मिलेगा।”
केंद्र सरकार की रणनीति पर सस्पेंस बरकरार
हालांकि इस तीन चरणीय रणनीति की विस्तृत जानकारी साझा नहीं की गई है। सूत्रों के अनुसार, इसमें तकनीकी, कूटनीतिक और कानूनी पहलुओं को प्राथमिकता दी जा सकती है। भारत की योजना है कि संधि की समीक्षा कर उसे नई वास्तविकताओं और सुरक्षा जरूरतों के अनुरूप ढाला जाए।
उमर अब्दुल्ला का बयान: ‘हम पहले से ही विरोध में थे’
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर में कहा कि वह संधि के शुरू से ही विरोधी रहे हैं। उनका कहना है कि इस संधि से जम्मू-कश्मीर के हितों को नुकसान हुआ है और यह राज्य के लिए अनुचित रहा है।
भारत का पत्र: संधि सम्मान के आधार पर चलती है, डर के नहीं
भारत के जलशक्ति सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तानी समकक्ष को पत्र लिखते हुए साफ किया कि संधि अच्छे रिश्तों की नींव पर टिकी होती है, लेकिन जब एक पक्ष लगातार सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा हो, तो संधि का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
इस पत्र में भारत ने संधि के अनुच्छेद XII (3) का हवाला देते हुए, इसके संशोधन की औपचारिक मांग की है। पत्र में यह भी जोड़ा गया कि जनसंख्या, सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों के मद्देनज़र, वर्तमान हालात में संशोधन जरूरी है।

1960 में हुई थी ऐतिहासिक संधि, अब बदल रहे हैं समीकरण
सिंधु जल संधि 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी। इस समझौते के तहत 6 नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था। भारत को रावी, ब्यास और सतलुज जैसी पूर्वी नदियों का पूर्ण उपयोग करने का अधिकार मिला, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब जैसी पश्चिमी नदियों का कुछ हिस्सा ही भारत इस्तेमाल कर सकता था।
भारत की ओर से भेजे गए लेटर के मुख्य प्वाइंट
- अनुच्छेद XII (3) के तहत संशोधन की मांग:
भारत सरकार ने पाकिस्तान को आधिकारिक नोटिस भेजकर सिंधु जल संधि 1960 में संशोधन की मांग की है। - जनसंख्या और विकास में बदलाव:
संधि के बाद जनसंख्या काफी बढ़ी है, इसलिए अब क्लीन एनर्जी के विकास के लिए समझौते में बदलाव जरूरी हो गया है। - संधि के सम्मान में पाकिस्तान की विफलता:
किसी भी समझौते की नींव सम्मान पर होती है, लेकिन पाकिस्तान लगातार जम्मू-कश्मीर को निशाना बनाकर आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है। - भारत के अधिकारों पर असर:
सीमा सुरक्षा को लेकर बनी अनिश्चितताओं ने भारत के जल अधिकारों को बाधित किया है, और पाकिस्तान ने भारत के आग्रहों का कोई जवाब नहीं दिया। - संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित:
इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को तुरंत प्रभाव से स्थगित करने का निर्णय लिया है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: सिंधु जल संधि को रोकना ‘जंग का ऐलान’
भारत के इस कदम पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पाक सरकार ने इसे “एक्ट ऑफ वॉर” बताते हुए कहा है कि यदि भारत सिंधु जल संधि को रोकता है तो इसे एक युद्ध छेड़ने के समान माना जाएगा। इस बयान ने दक्षिण एशिया में पुनः जल कूटनीति को तनावपूर्ण मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।