Monday, April 28, 2025
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कुमार विश्वास बोले- संकट में लड़की जैसे हनुमानजी को याद करती है, वैसे ही थानों को करे तो समझूंगा पुलिस पर भरोसा बढ़ा

प्रसिद्ध कवि और वक्ता कुमार विश्वास ने कहा कि थानों में लोगों का भरोसा तब बढ़ेगा जब संकट के समय उन्हें उतनी ही आस्था से थाने की याद आएगी, जितनी आपात स्थिति में हनुमानजी को याद किया जाता है।

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि “जब अंधेरे रास्ते में एक लड़की के पीछे चार बदमाश लगे हों और वह जिस श्रद्धा से संकटमोचन को पुकारती है, अगर उसी तरह पुलिस थाने को भी पुकारे और वहां सुरक्षित महसूस करे, तो समझिए पुलिस में विश्वास जाग गया।” वे रविवार को जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में पूर्व आईपीएस अधिकारी हरिप्रसाद शर्मा की पुस्तक ‘कर्तव्य पथ’ के विमोचन के कार्यक्रम में बोल रहे थे।

हनुमानजी को बताया पुलिस का देवता

कुमार विश्वास ने कहा कि देश के अधिकांश पुलिस थानों में एकमात्र पूज्य देवता हनुमानजी ही हैं। उन्होंने बताया कि हनुमानगढ़ी में भी हनुमानजी ऊंचाई पर इस तरह विराजमान हैं जैसे कोई पुलिसकर्मी क्षेत्र की निगरानी कर रहा हो। उन्होंने कहा, “वैसे भी हनुमानजी को अयोध्या का कोतवाल कहा जाता है।”

‘संस्थानों की गरिमा भी इंसान तैयार करते हैं’

चुनाव आयोग पर उठते सवालों का जिक्र करते हुए कुमार विश्वास ने कहा कि विपक्ष अक्सर चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप लगाता है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “जहां जीत जाते हैं, वहां ईवीएम सही है, जहां हार जाते हैं, वहां ईवीएम में गड़बड़ी हो जाती है।”
उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन का उदाहरण देते हुए कहा कि संस्थाओं की गरिमा व्यक्तित्व से बनती है, नियमों से नहीं। शेषन ने अपनी दृढ़ता से चुनाव आयोग को एक आदरणीय संस्था बना दिया।

‘आज के युवा गांधी को भी गाली देने लगे हैं’

समाज में गिरते मूल्यों पर चिंता व्यक्त करते हुए कुमार विश्वास ने कहा कि आज 17 साल का लड़का भी महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों को गाली देने से नहीं चूकता। उन्होंने कहा, “कई बार इन युवाओं का ज्ञान वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी से आता है।”
उन्होंने कहा कि गांधीजी ने खुद अपनी कमजोरियां भी अपनी आत्मकथा में ईमानदारी से लिखीं, जो उनकी सत्यनिष्ठा का परिचायक है।

‘हर पीढ़ी का होता है अलग संघर्ष’

किताब ‘कर्तव्य पथ’ के विमोचन कार्यक्रम में कुमार विश्वास ने कहा कि हर पीढ़ी का अपना अलग संघर्ष होता है। उन्होंने साझा किया कि उनके पिता की पीढ़ी का संघर्ष जीविका और अस्तित्व के लिए था, जबकि आज के बच्चों का संघर्ष स्कूल बस पकड़ने तक सीमित रह गया है।
अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे संघर्ष का हिस्सा था बस में कोने की सीट पा लेना। आज चार्टर्ड फ्लाइट में सफर करता हूं, लेकिन वह सफर भी वर्षों के परिश्रम का परिणाम है।”

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