पोप फ्रांसिस पिछले कुछ समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें 14 फरवरी को इटली के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने बताया था कि उन्हें फेफड़ों में संक्रमण, निमोनिया और एनीमिया जैसी दिक्कतें थीं। इलाज के दौरान उनकी हालत बिगड़ती गई और आखिरकार उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। वेटिकन की तरफ से जारी मेडिकल रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि उनके किडनी ने काम करना बंद कर दिया था और प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से घट रही थी।
कैथोलिक चर्च के पहले गैर-यूरोपीय पोप थे फ्रांसिस
अर्जेंटीना से आने वाले पोप फ्रांसिस का असली नाम जोर्ज मारियो बर्गोलियो था। वह एक जेसुइट पादरी के रूप में चर्च से जुड़े थे। 2013 में उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च का 266वां पोप चुना गया था। खास बात यह रही कि वह पिछले करीब एक हजार सालों में पहले ऐसे पोप बने जो यूरोप के नहीं थे। उनके नेतृत्व में चर्च ने कई सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बात की और धर्म के साथ मानवीय सरोकारों को जोड़ने की कोशिश की।
नए पोप का चुनाव कैसे होता है?
पोप के निधन के बाद वेटिकन में ‘कॉन्क्लेव’ नाम की एक खास बैठक बुलाई जाती है। इसमें 80 साल से कम उम्र के सारे कार्डिनल्स शामिल होते हैं। यह पूरा चुनाव बेहद गोपनीय होता है और कार्डिनल्स को बाहर की दुनिया से पूरी तरह अलग कर दिया जाता है। वह एक जगह इकट्ठा होकर मतदान करते हैं। जब किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत मिल जाता है, तो वही नया पोप घोषित होता है। मतदान खत्म होने के बाद चैपल से सफेद धुआं निकलता है, जो इस बात का संकेत होता है कि नया पोप चुन लिया गया है।
कौन-कौन हो सकते हैं दावेदार?
इस बार फिलीपींस के कार्डिनल लुइस टैगल को सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वेटिकन में लंबे अनुभव की वजह से इटली के पिएत्रो पारोलिन का नाम भी चर्चा में है। अफ्रीका से घाना के पीटर टर्कसन सामाजिक न्याय की वकालत करते रहे हैं और अफ्रीकी पोप की रेस में हैं। वहीं हंगरी के पीटर एर्डो और इटली के एंजेलो स्कोला को परंपरावादी चेहरों के तौर पर देखा जा रहा है। भारत के चार कार्डिनल्स भी वोटिंग का हिस्सा होंगे, लेकिन अभी तक कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं आया है।
एशिया और अफ्रीका को क्यों नहीं मिलता ज्यादा मौका?
पूरी दुनिया में कैथोलिक आबादी में एशिया और अफ्रीका की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। 2022 तक यह आंकड़ा 1.4 बिलियन तक पहुंच गया था। बावजूद इसके, पोप बनने की रेस में यूरोप का पलड़ा भारी रहता है। इसकी वजह यह है कि वोटिंग करने वाले कार्डिनल्स में ज्यादातर यूरोपीय होते हैं। भारत और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से कार्डिनल्स की संख्या कम है।
इसके अलावा, इन इलाकों के कार्डिनल्स का वैश्विक प्रभाव भी सीमित रहता है, जबकि पोप से यह उम्मीद की जाती है कि वह पूरी दुनिया पर प्रभाव डाल सकें। चीन जैसे देशों में चर्च पर सरकारी नियंत्रण होने के कारण वहां के कैथोलिक चर्च को वेटिकन में मान्यता नहीं मिलती। यही कारण है कि इन क्षेत्रों को वेटिकन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।

1. पोप फ्रांसिस का निधन इटली के जेमेली अस्पताल में इलाज के दौरान हुआ, उन्हें फेफड़ों में संक्रमण और किडनी फेलियर जैसी समस्याएं थीं।
2. फ्रांसिस पहले गैर-यूरोपीय पोप थे, जिन्होंने 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च की कमान संभाली थी।
3. अब वेटिकन की ‘कॉन्क्लेव’ बैठक में 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल्स मिलकर नया पोप चुनेंगे।
4. फिलीपींस, इटली, घाना, हंगरी और भारत से संभावित दावेदारों के नाम चर्चा में हैं।
5. यूरोप का प्रभाव अभी भी ज्यादा है, जिससे एशिया और अफ्रीका से पोप बनने की संभावना कमजोर मानी जा रही है।