रविवार, जून 15, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत कोई धर्मशाला नहीं, हर विदेशी को नहीं दे सकते शरण

एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक, जो भारत में शरण मांग रहा था, उसकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि भारत हर किसी के लिए शरण स्थल नहीं बन सकता। यह टिप्पणी तब आई जब उस नागरिक ने भारत में रहकर शरण देने की मांग की थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत की आबादी पहले से ही 140 करोड़ पार कर चुकी है और हमें पहले अपनी चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।

UAPA में दोषी पाए जाने के बाद भारत से निकाले जाने का आदेश

मद्रास हाईकोर्ट ने उस श्रीलंकाई नागरिक को 2015 में आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों (LTTE से संबंध) में दोषी मानते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सजा पूरी होने के बाद उसे देश छोड़ना होगा और तब तक वह शरणार्थी कैंप में रखा जाएगा। इसी आदेश को चुनौती देते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

याचिकाकर्ता ने अपनी जान का खतरा बताया, कोर्ट नहीं माना

नागरिक ने दलील दी कि अगर उसे श्रीलंका भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है। उसने बताया कि वह पहले एलटीटीई से जुड़ा था, जिस वजह से उसे श्रीलंका में वांटेड घोषित कर दिया गया है। उसकी पत्नी और बेटा भी भारत में हैं, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद कोर्ट ने कहा कि वह किसी और देश में शरण की मांग कर सकता है, भारत उसके लिए जिम्मेदार नहीं है।

अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 पर भी दी सफाई

याचिकाकर्ता की ओर से संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (बोलने और घूमने की आजादी) की दलील दी गई। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने साफ किया कि अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं हुआ क्योंकि हिरासत कानून के मुताबिक थी। साथ ही अनुच्छेद 19 के अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए हैं, न कि विदेशियों के लिए।

सुप्रीम कोर्ट की पहले भी रही है ऐसी ही सख्त राय

यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों के मामले में सख्त रुख अपनाया है। इससे पहले भी रोहिंग्या शरणार्थियों के डिपोर्टेशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा था कि भारत को हर विदेशी के लिए शरण स्थल नहीं बनाया जा सकता।

 Nationalbreaking.com । नेशनल ब्रेकिंग - सबसे सटीक

  1. सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई तमिल नागरिक की शरण याचिका खारिज की।
  2. कोर्ट ने साफ कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है।
  3. याचिकाकर्ता ने जान के खतरे और परिवार की बीमारी की दलील दी थी।
  4. कोर्ट ने अनुच्छेद 19 को सिर्फ भारतीयों के लिए बताया।
  5. पहले भी रोहिंग्या केस में कोर्ट ने यही सख्त रुख अपनाया था।
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