Monday, April 28, 2025
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राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती हैं अदालतें, बोले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

राज्यसभा के इंटर्न्स से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने साफ कहा कि भारत में कभी भी ऐसा लोकतंत्र नहीं रहा जहां जज कानून बनाने वाले बन जाएं, कार्यपालिका की तरह काम करें या ‘सुपर संसद’ बनकर राष्ट्रपति को आदेश देने लगें। धनखड़ का इशारा उस फैसले की तरफ था जिसमें कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपालों की तरफ से भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा।

‘राष्ट्रपति को आदेश नहीं दिए जा सकते’

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति का पद भारतीय लोकतंत्र में सर्वोच्च होता है और वह किसी राजनीतिक दल या सरकार के मातहत नहीं आते। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को याद दिलाया कि राष्ट्रपति संविधान की रक्षा और देश की एकता के प्रतीक होते हैं। ऐसे में उन्हें डेडलाइन में फैसले का निर्देश देना न केवल संवैधानिक मर्यादा के खिलाफ है बल्कि न्यायपालिका की हद से बाहर जाने जैसा है।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले पर भी जताई नाराजगी

धनखड़ ने दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने पूछा कि एक हफ्ते तक यह खबर सामने क्यों नहीं आई? क्या इससे देश की न्यायिक व्यवस्था पर लोगों का भरोसा कमजोर नहीं होता? उन्होंने यह भी पूछा कि तीन जजों की जांच कमेटी किस आधार पर बनी है और क्या उसे संसद की मंजूरी मिली है? उन्होंने साफ कहा कि सिफारिश करना एक बात है, लेकिन कार्रवाई का अधिकार सिर्फ संसद के पास है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते अपने फैसले में कहा था कि अगर कोई राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा। यह आदेश तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर आया जिसमें राज्यपाल की तरफ से बिल पास न करने की शिकायत की गई थी। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के पास ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार नहीं है और उन्हें समय रहते मंजूरी या अस्वीकृति का निर्णय देना चाहिए।

‘सुपर संसद’ की चिंता और लोकतंत्र का भविष्य

उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर यही रुख चलता रहा तो हम उस दिशा में बढ़ेंगे जहां कोई जवाबदेही नहीं होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जज कानून बनाएंगे, सरकार की तरह फैसले लेंगे और संसद की जगह खुद को रखेंगे, तो लोकतंत्र की मूल भावना खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है जब हमें संविधान की सीमाओं को दोबारा समझने और उसका सम्मान करने की जरूरत है।

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  1. उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की आलोचना की जिसमें राष्ट्रपति को डेडलाइन में बिल पर फैसला लेने को कहा गया था।
  2. उन्होंने कहा कि ऐसा लोकतंत्र कभी नहीं रहा जहां जज ‘सुपर संसद’ की भूमिका निभाएं और राष्ट्रपति को निर्देश दें।
  3. दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले की जांच प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए।
  4. धनखड़ ने कहा कि राष्ट्रपति को आदेश देना संविधान के खिलाफ है और न्यायपालिका को अपनी सीमाएं समझनी होंगी।
  5. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की निष्क्रियता पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति को समयसीमा में फैसला देने का निर्देश दिया था।
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