आज वरुथिनी एकादशी है। यह एकादशी हिंदू पंचांग में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की तिथि को आती है। मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के वराह रूप की आराधना की जाती है, जो विशेष रूप से कष्टों को दूर करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।
वरुथिनी एकादशी के दिन को सुरक्षा और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। “वरुथिनी” शब्द का अर्थ ही होता है ‘रक्षा करने वाली’। समाज में यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा से बचाव और आध्यात्मिक बल के लिए रखा जाता है। यह दिन धार्मिक अनुशासन, संयम और पुण्य कर्मों के लिए जाना जाता है।
धार्मिक और पौराणिक महत्व
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वरुथिनी एकादशी का महत्व बताया था। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है बल्कि इसे करने से कन्यादान के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। एक कथा के अनुसार, राजा मान्धाता ने इसी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति की थी।
इस दिन लक्ष्मी जी के साथ विष्णु जी की आराधना विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। यह श्रद्धा और आस्था का पर्व है, जो सामाजिक जीवन में परोपकार और संयम की भावना को सशक्त करता है।
व्रत विधि और सामाजिक अनुशासन
वरुथिनी एकादशी व्रत का आरंभ 23 अप्रैल की शाम 4:44 बजे होगा और समाप्ति 24 अप्रैल को दोपहर 2:31 बजे होगी। चूंकि एकादशी तिथि का उदयकाल 24 अप्रैल को है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा। इस दिन सुबह स्नान कर तांबे के लोटे से सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है। इसके बाद घर के मंदिर में भगवान गणेश की पूजा की जाती है, और फिर विष्णु-लक्ष्मी की आराधना की जाती है।
पूजन में दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक, दूध, चंदन, पुष्प, तुलसी और मिठाई से भोग लगाना शुभ होता है। इस दिन दान का विशेष महत्व है। आम, तरबूज जैसे मौसमी फलों का दान, तिल के पकवानों का भोग, तेल और वस्त्रों का दान, समाज में सेवा और सहयोग की भावना को मजबूत करता है।
नशे से रहें दूर
एकादशी के दिन समाज में मांसाहार, नशा और तामसिक आहार का परित्याग किया जाता है। साथ ही मानसिक संयम पर भी जोर दिया जाता है। जैसे कि क्रोध से बचाव, अपशब्दों का त्याग, और ब्रह्मचर्य का पालन। इन नियमों से जुड़ी सामाजिक शिक्षाएं जीवन में संयम और चरित्र निर्माण को प्रेरित करती हैं।
एकादशी पर ऐसे करें पूजा
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को जल अर्पित करें।
- घर के मंदिर में श्री गणेश की पूजा करें। जल और पंचामृत से स्नान कराएं, फिर वस्त्र, हार और फूलों से श्रृंगार करें। चंदन का तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें।
- लड्डू का भोग लगाकर “श्री गणेशाय नमः” मंत्र का जप करें।
- विष्णु और महालक्ष्मी का पूजन दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक कर करें।
- दूध, फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें और धूप-दीप जलाकर आरती करें।
- शिव पूजन भी करें
- शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल अर्पित करें।
- चंदन का लेप लगाकर दीपक जलाएं और मिठाई का भोग लगाएं।
- “राम नाम” का जप करते हुए ध्यान करें।