संस्कृत शब्द ‘अक्षय’ का अर्थ है – जो कभी क्षीण न हो। अक्षय तृतीया, जो इस वर्ष 30 अप्रैल को मनाई जाएगी, भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में विशेष स्थान रखती है। इसे वर्ष के सबसे शुभ और अबूझ दिनों में से एक माना जाता है, जब किसी भी शुभ कार्य के लिए विशेष मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। इस दिन लोग सोना, चांदी और कीमती धातुएं खरीदते हैं, ताकि घर में स्थायी समृद्धि और शुभता बनी रहे।
अक्षय तृतीया केवल भौतिक संपन्नता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति का भी अवसर है। दीपदान इस पर्व का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसे शुभता और सकारात्मक ऊर्जा के आगमन से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि उचित स्थानों पर दीपक लगाने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
अक्षय तृतीया पर घर में कहां-कहां जलाएं दीपक
उत्तर दिशा में दीपक जलाना
भारतीय परंपरा में उत्तर दिशा को धन के देवता कुबेर और मां लक्ष्मी की दिशा माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन घर की उत्तर दिशा में दीपक जलाना आर्थिक समृद्धि, वैभव और सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है। इस दिशा में दीपक जलाने से परिवार में स्थायी धन और सौभाग्य का वास होता है।
पानी रखने के स्थान पर दीपक
रसोई में जहां पीने का पानी रखा जाता है, जिसे पारंपरिक रूप से ‘पंडेरी’ कहा जाता है, वहां भी इस दिन दीपक जलाना शुभ माना गया है। यह स्थान पितरों का प्रतीक स्थल माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर दीपक लगाने से पितरों की कृपा बनी रहती है और जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाएं स्वतः दूर हो जाती हैं।
जल स्रोतों के पास दीपदान
यदि घर के आसपास कोई कुआं, तालाब या अन्य जल स्रोत है, तो वहां भी अक्षय तृतीया की संध्या पर दीपक अवश्य जलाना चाहिए। यह प्रकृति और जलदेवताओं के प्रति आभार व्यक्त करने का एक साधन है, जो पारंपरिक भारतीय आस्था में प्रकृति संरक्षण का एक सुंदर संदेश भी देता है।
मुख्य द्वार पर दीपक लगाना
घर का मुख्य द्वार शुभता का प्रवेश द्वार माना जाता है। अक्षय तृतीया की संध्या पर मुख्य द्वार के दोनों ओर घी के दीपक जलाना अत्यंत शुभ होता है। मां लक्ष्मी वहीं निवास करती हैं, जहां उजाला, स्वच्छता और शुद्धता होती है। दीपक की यह ज्योति घर में समृद्धि, खुशहाली और धन-धान्य में वृद्धि का प्रतीक बनती है।
समाज और संस्कृति में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व
समाज में अक्षय तृतीया न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामूहिक रूप से भी सांस्कृतिक समृद्धि का संदेश देती है। इस दिन कई परिवार नए कार्यों की शुरुआत करते हैं, नए घरों में प्रवेश करते हैं या नई योजनाओं की नींव रखते हैं। बाजारों में सोना-चांदी की खरीदारी के साथ-साथ, मंदिरों में दीपदान और सामूहिक पूजा का आयोजन देखने को मिलता है। जल संरक्षण और प्रकृति पूजन जैसे कार्य भी अक्षय तृतीया की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।