Tuesday, April 29, 2025
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कैश कांड में आरोपित जस्टिस यशवंत वर्मा ने ली शपथ, इलाहाबाद हाईकोर्ट में बने जज

कैश कांड के आरोपों से घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह परंपरागत कोर्टरूम की बजाय हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली के चैंबर में आयोजित किया गया। आमतौर पर हाईकोर्ट में जजों का शपथ समारोह कोर्टरूम में होता है, जिसमें सभी जज और सीनियर अधिवक्ता मौजूद रहते हैं। लेकिन विवादों को देखते हुए इस बार यह प्रक्रिया बेहद सीमित दायरे में पूरी की गई।

कोलेजियम की सिफारिश पर हुआ तबादला

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ चल रहे कैश कांड के आरोपों के बीच सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट करने की सिफारिश की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने 28 मार्च को इस सिफारिश को मंजूरी दी और स्थानांतरण को औपचारिक रूप दिया गया। शपथ के तुरंत बाद उनका नाम इलाहाबाद हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अपडेट कर दिया गया।

न्यायिक कामकाज पर फिलहाल रोक

हालांकि शपथ लेने के बावजूद जस्टिस वर्मा फिलहाल किसी भी प्रकार का न्यायिक कार्य नहीं संभाल पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच पूरी होने तक उनके न्यायिक कार्य पर रोक लगाई गई है। इसके अलावा, वह सीनियरिटी सूची में नौवें स्थान पर हैं, जिससे वे प्रशासनिक कार्यों में भी भाग नहीं ले सकेंगे। यानी अभी वे केवल नाम के जज बने रहेंगे, लेकिन कोई सक्रिय जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे।

वकीलों के विरोध के बाद लिया गया निर्णय

जस्टिस वर्मा के तबादले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों ने पहले जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। बार एसोसिएशन ने कार्य बहिष्कार तक का ऐलान किया था। लेकिन बाद में कार्यकारिणी की बैठक में आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया गया। वकीलों की मांग थी कि जांच पूरी होने तक जस्टिस वर्मा को न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। यही कारण रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी न्यायिक कामकाज से उन्हें दूर रखा।

राष्ट्रीय सम्मेलन की घोषणा

इस पूरे प्रकरण के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने 26 और 27 अप्रैल को प्रयागराज में एक नेशनल लेवल कॉन्फ्रेंस आयोजित करने की घोषणा की है। इस सम्मेलन का उद्देश्य न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे मुद्दों पर चर्चा करना है। जस्टिस यशवंत वर्मा का यह शपथ ग्रहण भले ही औपचारिक हो, लेकिन इससे जुड़ी परिस्थितियों ने न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बार फिर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

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  1. शपथ ग्रहण समारोह परंपरागत कोर्टरूम की बजाय चीफ जस्टिस अरुण भंसाली के चैंबर में आयोजित किया गया, जिससे समारोह सीमित रखा गया।
  2. उनका तबादला सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम की सिफारिश पर हुआ, जिसे केंद्र सरकार ने 28 मार्च को मंजूरी दी।
  3. शपथ लेने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट की जांच पूरी होने तक उन्हें किसी भी न्यायिक या प्रशासनिक कार्य से दूर रखा गया है।
  4. वकीलों ने पहले उनके तबादले का विरोध करते हुए कार्य बहिष्कार की चेतावनी दी थी और जांच पूरी होने तक न्यायिक कार्य न देने की मांग की थी।
  5. इस पूरे घटनाक्रम के बाद, 26-27 अप्रैल को प्रयागराज में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही पर चर्चा होगी।
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