प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न और रानी सुतिदा से मुलाकात की, जो भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत एक अहम कूटनीतिक पड़ाव माना जा रहा है। यह मुलाकात बैंकॉक स्थित भव्य दुशित महल में हुई, जहां दोनों देशों के बीच बहुआयामी संबंधों को गहराने पर चर्चा हुई।
पीएम मोदी की थाई सम्राट से मुलाकात
इस उच्चस्तरीय बैठक में साझा सांस्कृतिक विरासत को केंद्र में रखते हुए भगवान बुद्ध के भारत से थाईलैंड गए पवित्र अवशेषों के महत्व पर विशेष जोर दिया गया। यह पहल दोनों देशों की बौद्ध परंपरा को न केवल सशक्त करती है, बल्कि जनता के बीच गहरे भावनात्मक जुड़ाव को भी नई दिशा देती है।
सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से संदेश
प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान सिर्फ राजनयिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दूत की भूमिका भी निभाई। उन्होंने थाईलैंड के सम्राट और अन्य प्रमुख नेताओं को जो उपहार भेंट किए, वे भारत की विविध और समृद्ध कला-संस्कृति के प्रतिनिधि हैं।
तोहफों में भारत की विरासत
राजा महा वजिरालोंगकोर्न को मोदी ने सारनाथ की गुप्त-पाल शैली की पीतल की बुद्ध प्रतिमा भेंट की, जो ध्यान, करुणा और शांति का प्रतीक है। वहीं, रानी सुतिदा को वाराणसी की पारंपरिक ब्रोकेड सिल्क शॉल दी गई, जिसमें ग्रामीण जीवन और पिछवई चित्रकला की छाप है—यह भारतीय बुनाई कला की बेजोड़ मिसाल है।
थाई प्रधानमंत्री सेथ्था थाविसिन को डोकरा शैली में बनी एक मोर की आकृति वाली नाव दी गई, जो जनजातीय विरासत और मानव-प्रकृति के सामंजस्य की प्रतीक है। उनकी पत्नी को सोने की परत चढ़ी हुई मीनाकारी वाली बाघ आकृति की कफलिंक दी गई, जो शौर्य और नेतृत्व का प्रतीक है।
पूर्व पीएम थक्सिन शिनवात्रा को अनोखी भेंट: भारतीय परंपराओं की झलक
पूर्व प्रधानमंत्री थक्सिन शिनवात्रा को आंध्र प्रदेश की पारंपरिक शैली में बनी एक पीतल की उरली भेंट की गई, जिसमें मोर और दीपक का सजावटी संयोजन है। यह उपहार सिर्फ शिल्प नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिकता और समृद्धि का प्रतीक भी है।
यह पहल इस बात का संकेत है कि भारत अब अपने उपहारों के जरिए केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं निभा रहा, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान और कारीगरी की परंपरा को रणनीतिक ढंग से विश्व मंच पर रख रहा है।
मोदी की यात्रा का संदेश: रिश्ते अब केवल राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक भी हैं
प्रधानमंत्री मोदी की यह दो दिवसीय यात्रा केवल औपचारिक बैठकों तक सीमित नहीं रही। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अपने संबंधों को केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव के आधार पर भी मजबूत करना चाहता है।
थाईलैंड जैसे बौद्ध-बहुल देश के साथ भगवान बुद्ध की विरासत को साझा करना न केवल धार्मिक कनेक्शन को उजागर करता है, बल्कि भारत की सॉफ्ट पावर को एक ठोस रणनीतिक आयाम भी देता है। इस यात्रा से यह स्पष्ट हुआ कि भारत अपनी सांस्कृतिक शक्ति के जरिये अंतरराष्ट्रीय संबंधों को और अधिक गहराई देने के लिए गंभीर है।

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड के राजा महा वजिरालोंगकोर्न और रानी सुतिदा से मुलाकात की, जो बैंकॉक स्थित भव्य दुशित महल में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और कूटनीतिक संवाद का हिस्सा रही।
- इस यात्रा में भगवान बुद्ध की साझा विरासत पर विशेष जोर दिया गया, जिससे दोनों देशों के बीच भावनात्मक और धार्मिक संबंधों को नई दिशा मिली।
- प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के सांस्कृतिक दूत के रूप में अपनी भूमिका निभाई और थाई सम्राट को सारनाथ शैली की बुद्ध प्रतिमा, तथा रानी को वाराणसी की ब्रोकेड शॉल भेंट की।
- अन्य उपहारों में डोकरा कला, मीनाकारी बाघ आकृति की कफलिंक, और आंध्र प्रदेश की पारंपरिक उरली शामिल रही, जो भारत की जनजातीय, आध्यात्मिक और कारीगरी परंपरा को दर्शाती है।
- यह दो दिवसीय यात्रा दर्शाती है कि भारत अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंध मजबूत कर रहा है।