राजस्थान हाईकोर्ट ने साइबर फ्रॉड से जुड़े एक अहम मामले में बैंक को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई ग्राहक RBI की गाइडलाइन के अनुसार तीन दिन के भीतर बैंक को साइबर ठगी की सूचना दे देता है, तो संबंधित बैंक की जिम्मेदारी बनती है कि वह पीड़ित को पूरी राशि लौटाए।
यह आदेश जस्टिस अनुप ढंढ की एकल पीठ ने राकेश तोतूका की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ता के साथ 58.93 लाख रुपये की साइबर धोखाधड़ी हुई थी, जिसकी सूचना उन्होंने समय रहते बैंक को दे दी थी, लेकिन बैंक ने केवल 15.60 लाख रुपये लौटाए। इसके खिलाफ उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
सिम स्वैप कर खाते से उड़ाए थे 58 लाख
याचिकाकर्ता का IDBI बैंक जयपुर शाखा में एक ड्रॉप लाइन ओवरड्राफ्ट खाता था, जिसकी लिमिट 1.39 करोड़ रुपये थी। 11 फरवरी 2022 की रात साइबर अपराधियों ने उनकी सिम स्वैप कर ली और 16 बार ट्रांजैक्शन कर खाते से कुल 58.93 लाख रुपये निकाल लिए।
याचिकाकर्ता ने घटना की जानकारी मिलने पर तीन दिन के भीतर बैंक को लिखित सूचना दी, लेकिन बावजूद इसके पूरी राशि वापस नहीं की गई। उन्होंने RBI के ऑम्बुड्समैन को भी शिकायत की, जिसके बाद सिर्फ 15.60 लाख रुपये लौटाए गए।
याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रतीक कासलीवाल ने दलील दी कि RBI की 2017 की गाइडलाइन के अनुसार, इस प्रकार की स्थिति में ग्राहक की ओर से समय पर सूचना देने पर पूरी क्षतिपूर्ति बैंक की जिम्मेदारी होती है।
कोर्ट ने आंतरिक निगरानी प्रणाली को बताया नाकाम
बैंक की ओर से यह तर्क दिया गया कि ग्राहक के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर सभी अलर्ट भेजे गए थे, इसलिए बैंक की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि बैंक की आंतरिक जोखिम निगरानी प्रणाली ने कई संदिग्ध लेन-देन को पहले ही चिह्नित कर लिया था, लेकिन बैंक ने समय पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। ऐसे में यह बैंक की जिम्मेदारी बनती है कि वह पूरा नुकसान और 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित राशि याचिकाकर्ता को लौटाए।
डिजिटल युग में बढ़ते फ्रॉड पर कोर्ट सख्त, RBI को निर्देश दिए
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डिजिटल बैंकिंग के इस दौर में साइबर फ्रॉड तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में RBI को चाहिए कि वह साइबर धोखाधड़ी से बचाव को लेकर व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बैंकों की आंतरिक तकनीकी प्रणाली को और सुदृढ़ किया जाए और डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और मध्यस्थ संस्थाओं पर कड़ी जवाबदेही तय की जाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ग्राहक की सुरक्षा कोई सुविधा नहीं, बल्कि उसका विधिसम्मत अधिकार है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।