रविवार, जून 15, 2025
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हाईकोर्ट ने कहा– विकास कार्य के नाम पर एक पेड़ काटो तो दस लगाओ, जनहित याचिका पर दिया फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट ने कोटपूतली में सड़क विस्तार को लेकर पेड़ों की कटाई पर सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि विकास कार्यों के लिए पेड़ हटाना जरूरी हो, तो उसके बदले में कम से कम दस छायादार पौधे लगाए जाएं। कोर्ट ने इस आदेश को “पब्लिक इंटरेस्ट” यानी सार्वजनिक हित में जारी करते हुए कहा कि पेड़ केवल हरियाली नहीं, बल्कि “मौन लाभदाता” हैं जो सालों तक पर्यावरण को संजीवनी देते हैं।

कोटपूतली परिषद को लगाना होगा हिसाब

न्यायमूर्ति अनूप ढंढ की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता ज्ञानचंद सोनी और अन्य की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोटपूतली नगर परिषद को निर्देश दिया कि वह उन सभी पेड़ों और पौधों की सूची तैयार करे जिन्हें सड़क निर्माण या चौड़ीकरण के कारण हटाया जा रहा है। हर हटाए गए पेड़ के स्थान पर स्थानीय सार्वजनिक स्थानों पर दस छायादार पौधे लगाने होंगे और इसकी रिपोर्ट अदालत में पेश करनी होगी।

मास्टर प्लान से नहीं चलेगा प्राधिकरण का मन

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आशीष शर्मा ने दलील दी कि कोटपूतली नगर परिषद ने बिना कानूनी प्रक्रिया के तीन साल पहले लोगों को उनकी वैध संपत्तियों से बेदखल कर दिया। मास्टर प्लान के अनुसार सड़क की चौड़ाई 60 फीट निर्धारित है, जबकि परिषद 80 फीट चौड़ी सड़क बना रहा है।

इस पर अदालत ने साफ कहा कि मास्टर प्लान योजनाबद्ध विकास का दस्तावेज होता है, जिसे किसी अधिकारी या प्राधिकरण की मनमानी से बदला नहीं जा सकता। यह पूरे समाज के हित में बनाया गया होता है, न कि किसी एक व्यक्ति या संस्था के लिए।

अधिकारियों को 15 दिन में बनानी होगी कमेटी

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि 15 दिन के भीतर एक कमेटी गठित की जाए, जो प्रभावित लोगों के स्वामित्व दस्तावेजों की जांच कर सुनवाई करे। यदि किसी के पास वैध रजिस्ट्री, विक्रय पत्र या खेतड़ी रियासत से जारी पट्टे हैं और उनकी जमीन सड़क निर्माण में आ रही है, तो उन्हें डीडीसी रेट के अनुसार मुआवज़ा दिया जाए या फिर सरकारी योजना के तहत वैकल्पिक भूमि आवंटित की जाए।

न्यायपालिका ने दिखाई संवेदनशीलता

इस आदेश से यह साफ हो गया है कि पर्यावरण और आम नागरिकों के हितों की अनदेखी कर कोई भी विकास कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। अदालत ने विकास और पर्यावरण संतुलन की ज़रूरत को केंद्र में रखते हुए सरकार को जनहित में जवाबदेह बनाया है।

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