हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व है। यह पर्व माता शीतला को समर्पित है, जिन्हें रोगों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु माता शीतला की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे स्वास्थ्य एवं समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। पंचांग के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च 2025, शनिवार को रखा जाएगा। हालााकि कुछ जगहों पर ये व्रत 21 मार्च को भी रखा जा रहा है।
शीतला अष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
- अष्टमी तिथि प्रारंभ: 21 मार्च को रात 11:41 बजे
- अष्टमी तिथि समाप्त: 22 मार्च को रात 12:25 बजे
इस दिन सूर्योदय से लेकर रात तक मूल नक्षत्र रहेगा, जो इसे और अधिक शुभ बनाता है। उत्तर भारत में इसे ‘बासोड़ा’ के नाम से भी जाना जाता है।
शीतला माता की सवारी और प्रतीक
स्कंदपुराण के अनुसार, माता शीतला गधे की सवारी करती हैं और उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप तथा नीम की पत्तियां होती हैं। यह प्रतीक स्वच्छता, आरोग्य और नकारात्मक शक्तियों के नाश का संकेत देते हैं।
शीतला अष्टमी की प्रमुख प्रथाएं
- नीम का वंदनवार – इस दिन घर के द्वार पर नीम के पत्तों का तोरण लगाया जाता है, जिससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- बासी भोजन का भोग – शीतला माता को ठंडा भोजन अर्पित करने का विधान है। इसलिए सप्तमी को भोजन तैयार कर अगले दिन इसे भोग लगाया जाता है।
- आरोग्य का वरदान – मान्यता है कि इस व्रत को करने से बीमारियों से बचाव होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि
- सप्तमी की रात: माता के भोग के लिए भोजन तैयार करें और इसे ठंडा करें।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मंदिर या घर में माता शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और गंगा जल से स्नान कराएं।
- दीपक जलाकर शीतला माता की आरती करें और बासी भोजन का भोग लगाएं।
- शीतला स्तोत्र का पाठ करें और पूरे दिन सात्त्विक जीवनशैली अपनाएं।
इस व्रत का धार्मिक और सामाजिक महत्व
शीतला अष्टमी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्वच्छता और स्वास्थ्य का प्रतीक भी है। यह पर्व संक्रमण और बीमारियों से बचाव का संदेश देता है। माता शीतला की पूजा से चेचक, खसरा, स्किन इंफेक्शन और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव होता है।