सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मेडिकल छात्रों पर राज्य सरकारों द्वारा लगाए जा रहे सेवा बांड पर कड़ी आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि अखिल भारतीय कोटे के तहत एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले छात्रों को दूरदराज के क्षेत्रों में सेवा देने के लिए बांड पर हस्ताक्षर करवाना बंधुआ मजदूरी जैसा है।
यह मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया। पीठ गढ़वाल के एक मेडिकल कॉलेज के 2011 बैच के छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। छात्रों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बांड का पालन न करने पर 18 प्रतिशत ब्याज के साथ अधिक शुल्क का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
अदालत का आदेश: ब्याज दर घटाकर 9 प्रतिशत की
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राहत देते हुए ब्याज दर को घटाकर 9 प्रतिशत कर दिया और डॉक्टरों को चार सप्ताह का समय दिया। अदालत ने कहा कि छात्रों को राज्य सरकार की 2009 की नीति के बारे में पता था जब उन्होंने 2011 में प्रवेश फॉर्म भरा था।
सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल उठाते हुए कहा कि अखिल भारतीय कोटे में उत्तीर्ण होने वाले छात्र राज्य कोटे के छात्रों से अधिक मेधावी होते हैं। ऐसे में उनके साथ बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार कैसे किया जा सकता है?
राज्य सरकार की नीति पर सवाल
उत्तराखंड की 2009 की नीति के अनुसार, राज्य के मेडिकल कॉलेजों में अखिल भारतीय कोटा के छात्रों को रियायती शुल्क के बदले पांच साल तक ‘दुर्गम’ और ‘अत्यंत दुर्गम’ क्षेत्रों में सेवा करनी होगी। राज्य सरकार ने इसे स्वैच्छिक बांड बताया, जिसमें छात्रों को रियायती शुल्क पर पढ़ाई का मौका दिया गया था।
राज्य के वकील ने अदालत को बताया कि जो छात्र इस सेवा बांड का पालन नहीं करना चाहते, वे 30 लाख रुपये का भुगतान करके इससे मुक्त हो सकते हैं।
अदालत का तर्क: अखिल भारतीय कोटा छात्रों पर शर्तें गलत
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य सरकारें अखिल भारतीय कोटे में दाखिला लेने वाले छात्रों पर इस तरह की शर्तें नहीं थोप सकतीं। अदालत ने सवाल उठाया कि तमिलनाडु से आए एक छात्र से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों में सेवा करे, जहां उसकी भाषा और सांस्कृतिक बाधाएं होंगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्र में रहने वाला मरीज तमिलनाडु के मूल निवासी डॉक्टर को अपनी समस्या ठीक से नहीं बता पाएगा, जिससे इलाज में दिक्कतें आएंगी।
केंद्र का पक्ष: डॉक्टरों की कमी के कारण लिया गया निर्णय
केंद्र के वकील ने तर्क दिया कि कई राज्य दूरदराज के क्षेत्रों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सेवा बांड लागू कर रहे हैं, क्योंकि इन इलाकों में काम करने के लिए कोई तैयार नहीं होता।
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि छात्रों को राज्य से जोड़ने के लिए बेहतर नीति बनाई जानी चाहिए, न कि जबरन सेवा का बंधन लगाया जाए।