सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 मार्च) को झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल कसने के लिए बड़ा आदेश जारी किया। कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे दो महीने के भीतर एक ऐसा सिस्टम बनाएं, जहां लोग भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करा सकें और उनका समाधान हो।
कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां शामिल थे, ने कहा कि राज्यों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस ‘ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954’ के तहत कार्रवाई करने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित हो।
कोर्ट के आदेश के बाद क्या होगा?
- राज्यों को दो महीने में शिकायत निवारण सिस्टम बनाना होगा।
- हर तीन महीने में इस सिस्टम की जानकारी जनता को देनी होगी।
- पुलिस को भ्रामक विज्ञापन रोकने के लिए 1954 के कानून के तहत कार्रवाई की ट्रेनिंग दी जाएगी।
- अगर राज्य सरकारें 26 मई 2025 तक इस आदेश का पालन नहीं करती हैं, तो सुप्रीम कोर्ट सख्त कार्रवाई कर सकता है।
इस फैसले से उन कंपनियों और ब्रांड्स पर शिकंजा कसने की उम्मीद है, जो अपने प्रोडक्ट्स के झूठे दावों के साथ जनता को गुमराह करते हैं।
IMA ने पतंजलि के खिलाफ याचिका क्यों दायर की थी?
2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें पतंजलि और योगगुरु रामदेव पर कोविड वैक्सीनेशन और मॉडर्न मेडिकल साइंस के खिलाफ गलत प्रचार करने का आरोप लगाया गया था।
IMA ने कहा था कि पतंजलि ने 2020 में कोरोनिल नाम की दवा लॉन्च कर यह दावा किया था कि इससे 7 दिन में कोरोना ठीक हो जाएगा। हालांकि, 2021 में आयुष मंत्रालय ने साफ किया कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं है।
इसके बावजूद, 2022 में पतंजलि ने कई अखबारों में बड़े विज्ञापन छपवाए, जिनमें मॉडर्न मेडिकल साइंस को लेकर भ्रामक बातें लिखी गई थीं। IMA ने इसे जनता को गुमराह करने वाला बताया और अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी लगाई थी फटकार
- नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापन बंद करने का निर्देश दिया।
- 2024: जब पतंजलि ने विज्ञापन बंद नहीं किए, तो कोर्ट ने उसे दोबारा कड़ी फटकार लगाई।
- 16 अप्रैल 2024: सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद पतंजलि ने लिखित माफी मांगी।
अब क्या बदलेगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस नए आदेश के बाद राज्यों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। साथ ही, पुलिस को 1954 के कानून के तहत कार्रवाई के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि झूठे दावों वाले विज्ञापनों पर तुरंत शिकंजा कसा जा सके।
सरकारों के लिए अब यह देखना जरूरी होगा कि वे इस आदेश को कितनी तेजी से लागू करती हैं। यदि तय समय में यह सिस्टम नहीं बनता, तो सुप्रीम कोर्ट और कड़े कदम उठा सकता है।
खबर की बड़ी बातें
- सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च 2025 को भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए सभी राज्यों को 2 महीने में शिकायत निवारण प्रणाली बनाने का निर्देश दिया।
- IMA ने 2022 में याचिका दायर की, जिसमें पतंजलि और योगगुरु रामदेव पर मॉडर्न मेडिकल साइंस के खिलाफ दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया गया था।
- कोर्ट ने राज्यों को कहा कि हर 3 महीने में जनता को शिकायत निवारण प्रणाली की जानकारी दी जाए और पुलिस को भी इस कानून पर ट्रेनिंग दी जाए।
- यदि राज्य सरकारें 26 मई 2025 तक इस आदेश का पालन नहीं करती हैं, तो सुप्रीम कोर्ट सख्त कदम उठा सकता है।
- पतंजलि ने 2020 में कोरोनिल लॉन्च किया था, जिसे कोरोना के इलाज के रूप में प्रचारित किया गया, लेकिन बाद में आयुष मंत्रालय ने इसे गलत करार दिया।