सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें अदालत ने कहा था कि “नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छूना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप या ‘अटेम्प्ट टू रेप’ नहीं माना जा सकता।”
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस फैसले को “पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय” करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
जस्टिस गवई की टिप्पणी: फैसले में संवेदनशीलता की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए कहा-
- “यह बेहद गंभीर मामला है और फैसले में न्यायिक संवेदनशीलता की कमी झलकती है। इस तरह की टिप्पणियां समाज में गलत संदेश देती हैं। हमें यह देखकर दुख हुआ कि फैसला देने वाले जज ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई।”
इस दौरान, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह उचित है और कुछ मामलों में न्यायिक रोक लगाना आवश्यक होता है।”
क्या था पूरा मामला?
यूपी के कासगंज जिले में एक महिला ने अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ 10 नवंबर 2021 को हुई घटना की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। महिला ने बताया कि वह अपनी बेटी के साथ रिश्तेदार के घर गई थी और जब वह वापस लौट रही थी, तभी गांव के तीन युवकों – पवन, आकाश और अशोक ने रास्ते में रोक लिया।
- पवन ने लड़की को जबरन अपनी बाइक पर बैठा लिया। आकाश ने लड़की के निजी अंगों को छूने की कोशिश की और जबरदस्ती पुलिया की ओर खींचा।
- उसका पायजामा पकड़कर नाड़ा तोड़ने का प्रयास किया। लड़की की चीख-पुकार सुनकर कुछ ग्रामीण पहुंचे, तो आरोपियों ने तमंचा दिखाकर उन्हें धमकाया और फरार हो गए।
पुलिस ने नहीं की कार्रवाई, कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुई FIR
घटना के बाद जब पीड़ित लड़की की मां ने आरोपी के घर जाकर शिकायत की, तो पवन के पिता ने धमकी दी और अभद्र भाषा का प्रयोग किया। महिला अगले दिन पुलिस थाने गई, लेकिन वहां कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद, उसने कोर्ट का रुख किया।
- 21 मार्च 2022 को कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए FIR दर्ज करने का आदेश दिया। IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज हुआ। अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि “लड़की के निजी अंग छूना और नाड़ा तोड़ना रेप की श्रेणी में नहीं आता।”
कोर्ट ने आरोपियों की क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली और उनके खिलाफ रेप और अटेम्प्ट टू रेप की धाराएं हटा दीं। हाईकोर्ट के इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, महिला संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर रोक लगा दी।