सोमवार, जून 16, 2025
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बोनस अंकों से भर्ती पर हाईकोर्ट की सख्ती, लेकिन कर्मचारियों को नहीं हटाया जाएगा, मिलेगी कॉन्ट्रैक्ट नौकरी

हरियाणा में सामाजिक-आर्थिक आधार पर दिए गए बोनस अंकों से सरकारी नौकरी पाने वाले हजारों कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्पष्ट कर दिया है कि इन कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से नहीं निकाला जाएगा, क्योंकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। कोर्ट ने कहा कि गलती सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में थी, न कि उन लोगों की जिन्होंने निर्धारित प्रक्रिया से नियुक्ति पाई थी।

नए मेरिट के आधार पर होगी समीक्षा

हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि संशोधित मेरिट सूची में स्थान न पाने वाले कर्मचारियों को सरकार कॉन्ट्रैक्ट आधार पर नियुक्त करेगी। जब भी विभागों में नियमित पद खाली होंगे, उन्हें नियमानुसार अवसर दिए जाएंगे। कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता की बात करते हुए कहा कि कोई भी नीति केवल सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर अतिरिक्त अंक नहीं दे सकती।

‘नो-फॉल्ट थ्योरी’ का हुआ प्रयोग

जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी मेहता की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए “नो-फॉल्ट थ्योरी” लागू की है। इसका अर्थ है कि चूंकि गलती सरकार की नीतियों में थी, इसलिए कर्मचारियों को इसका खामियाजा नहीं भुगतना चाहिए। उन्होंने कठोर चयन प्रक्रिया पास की थी और वर्षों से काम कर रहे हैं, इसलिए उन्हें तुरंत हटाना उचित नहीं होगा।

कोर्ट ने कहा – आरक्षण की सीमा का उल्लंघन

कोर्ट ने सामाजिक-आर्थिक आधार पर दिए गए 5 बोनस अंकों की वैधता को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह आरक्षण के रूप में दोहराव है। पहले से ही आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण मिल रहा है, ऐसे में दोहरी छूट देना संविधान के 50% आरक्षण नियम का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार ने किसी वैज्ञानिक या सामाजिक आंकड़े के बिना यह नियम लागू किया, जो प्रक्रिया को दूषित करता है।

10 हजार से ज्यादा कर्मचारी होंगे प्रभावित

इस फैसले का असर राज्यभर के करीब 10 हजार कर्मचारियों पर पड़ेगा। कोर्ट ने सभी 2019 के बाद की भर्तियों को फिर से जांचने का निर्देश दिया है, जहां इन बोनस अंकों के आधार पर नियुक्ति हुई थी। हालांकि, जिनकी नियुक्ति वैध तरीके से हुई है, उन्हें बरकरार रखा जाएगा।

सरकार का तर्क हुआ खारिज

राज्य सरकार ने दलील दी थी कि यह नीति समाज के कमजोर वर्गों को अवसर देने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर कहा कि ऐसी नीति जो केवल सामाजिक स्थिति के आधार पर अंक दे, वह संविधान के समता के सिद्धांत के खिलाफ है।

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