शनिवार, नवम्बर 8, 2025
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धराली में बादल फटा, खीर गंगा में बाढ़… क्यों बार-बार गढ़वाल ही बन रहा है प्राकृतिक आपदाओं का गढ़?

उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने से खीर गंगा नदी में अचानक आई बाढ़ ने इलाके में भारी तबाही मचाई. गढ़वाल हिमालय की कमजोर भौगोलिक बनावट, लगातार हो रही भारी बारिश, अनियंत्रित निर्माण, पेड़ों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की वजह से यह क्षेत्र भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील हो गया है. धराली की घटना के बहाने एक बार फिर ये सवाल खड़ा हुआ है कि आखिर क्यों उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं बार-बार हो रही हैं, जबकि कुमाऊं क्षेत्र में अपेक्षाकृत ऐसी घटनाएं कम देखने को मिलती हैं. इसके पीछे कई वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और मानवीय वजहें हैं जिन पर अब गंभीर मंथन की जरूरत है.

धराली में फिर टूटा आसमानी कहर

उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने की बड़ी घटना हुई. खीर गंगा नदी में अचानक आया सैलाब कई घरों और खेतों को बहा ले गया. हालात इतने खराब हो गए कि स्थानीय लोगों को रातभर अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों की तलाश करनी पड़ी. SDRF की टीम ने मौके पर पहुंचकर राहत और बचाव का काम शुरू किया, लेकिन इलाके में भारी मलबा जमा होने से कई रास्ते बंद हो गए हैं.

गढ़वाल क्यों बना आपदाओं का केंद्र

गढ़वाल क्षेत्र की पहाड़ियां बहुत खड़ी हैं और यहां की मिट्टी ढीली किस्म की है. बारिश होते ही ये मिट्टी पानी सोख लेती है, जिससे वो अस्थिर हो जाती है. यही वजह है कि यहां भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएं बार-बार होती हैं. इसके अलावा, यहां लगातार हो रहे निर्माण कार्य, सड़क चौड़ीकरण और पेड़ों की कटाई भी खतरे को बढ़ा रहे हैं.

हिमनदियों की हालत और बिगड़ रही है

गंगोत्री और आसपास के इलाकों में हिमनदियां लगातार पिघल रही हैं. इससे भारी मात्रा में मलबा नीचे की तरफ आ रहा है, जो बारिश के पानी में बहकर बाढ़ का रूप ले लेता है. धराली की घटना भी इसी का नतीजा है, जहां बर्फ और मलबा मिलकर एक बड़े खतरे में तब्दील हो गया.

गढ़वाल और कुमाऊं में फर्क क्या है?

गढ़वाल में जहां बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं, वहीं कुमाऊं में ये काम छोटे स्तर पर हो रहा है. गढ़वाल की नदियां जैसे भागीरथी और अलकनंदा तेज बहाव वाली हैं, जो ज्यादा कटाव करती हैं. कुमाऊं की नदियों का प्रवाह थोड़ा शांत है, जिससे वहां का भूगोल ज्यादा स्थिर रहता है. इसके अलावा, गढ़वाल में धार्मिक पर्यटन भी ज्यादा है, जिससे पर्यावरण पर दबाव लगातार बढ़ रहा है.

क्या कहती हैं पुरानी रिपोर्टें

2013 में सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी ने उत्तराखंड की नाजुक पारिस्थितिकी को लेकर चिंता जताई थी. रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि बेतरतीब निर्माण, सड़कों की खुदाई और पहाड़ों को काटकर की जा रही गतिविधियां आपदा को न्योता दे रही हैं. बावजूद इसके गढ़वाल में विकास की दौड़ में पर्यावरण की अनदेखी जारी है.

 Nationalbreaking.com । नेशनल ब्रेकिंग - सबसे सटीक
  1. उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से खीर गंगा नदी में बाढ़ आई, जिससे भारी तबाही हुई.
  2. गढ़वाल की ढीली मिट्टी, खड़ी ढलान और भारी बारिश इसे आपदाओं के लिए ज्यादा संवेदनशील बनाते हैं.
  3. अनियंत्रित सड़क निर्माण, पेड़ कटाई और जलविद्युत परियोजनाएं पर्यावरण को और कमजोर कर रही हैं.
  4. तेजी से पिघलते ग्लेशियर और बढ़ते तापमान भी भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ा रहे हैं.
  5. कुमाऊं क्षेत्र की तुलना में गढ़वाल में ज्यादा आपदाएं इसलिए हो रही हैं क्योंकि यहां का भूगोल और मानवीय दखल ज्यादा खतरनाक है.
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